मैं हूँ इक टूटा सा घुंघरू जाने कब बिखर गया
जो करीब रहे तेरे उनका ही जीवन निखर गया
नहीं अब तुम मुझको ढूंढना बर्बाद ही रहने दो
यूँ ही फिरूँ मैं बेपता आज़ाद ही रहने दो
क्योंकि फिर पड़ेगा ढूंढना जाने किधर गया
मैं हूँ इक टूटा सा घुंघरू जाने कब बिखर गया
जो करीब रहे तेरे उनका ही जीवन निखर गया
मेरा तुझसे दूर रहना ही नसीब हो गया
जो कोई था तेरा अपना वो करीब हो गया
और बदनसीब कोई जिंदगी बेकार कर गया
मैं हूँ इक टूटा सा घुंघरू जाने कब बिखर गया
जो करीब रहे तेरे उनका ही जीवन निखर गया
चलो जो भी है कुबूल है मेरा काम दर्द देना
अच्छा हो तन्हाई रहे किसकी का दर्द बने ना
था नशा और गुरूर भी कबसे उतर गया
मैं हूँ इक टूटा सा घुंघरू जाने कब बिखर गया
जो करीब रहे तेरे उनका ही जीवन निखर गया
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