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बरसो रे मेघा मेघा , संगिनी सखी जु

बरसो रे मेघा मेघा
बरसो रे मेघा बरसो
बन कर तुम प्रेम बरखा
बरसो रे मेघा
विरहन की अखियों से होकर
हृदय में बरसो रे मेघा
बरसो

बरस कर तुम प्रेम प्रियतम प्रभु
रंग दो तन मन को ऐसा
तुम में तुम्हारी होकर
बूँद से सागर बन कर
मिल कर प्रियवर तुम में
तुम में तुम लो बसा
पा जाऊँ तुमको
खुद को खो कर सखा
बरसो रे मेघा
बरसो

हे प्रेम प्रभु प्रियतम मेरे
अंतर में स्थित करो ऐसा
द्वार जो खुल जाएं अंतस के
बाहर का मुख करें ना
भीतर की भीतर समा कर
पा जाऊँ खुद को तुम में
आओ मेरे प्रियवर
प्रीत में रंग कर
आसमान इंद्रधनुषी हुआ जैसा
तु बरखा में भरने आजा
बरसो रे मेघा
बरसो

यूँ तो तुम बिछुड़े कभी ना
रहे संग सदा सर्वदा
बन कर कभी पवन छुआ
तो कभी विरहअग्नि से
देह ये तप्त हुआ
कभी आए तुम संगीत बनकर
हृदय का तार वीणा हुआ
बरसो रे मेघा
बरसो

कभी तुम महक बन महके
नाचने लगा चित्त मोर हुआ
श्वासों की रवानगी में
सपंदन सिहरन का सिलसिला चला
रोम रोम में बसे तुम
तनप्राण ये कंपित हुआ
बरसो रे मेघा
बरसो

कभी तुम बरखा से बरसे
भीग भीग कर
खारे से अश्रु पीकर
तेरी प्रीत में मनमोहन
विरही ये मन रो रो कर
धुल कर तेरी नेह में
ये रग रग पवित्र हुआ
बरसो रे मेघा
बरसो

अब श्वास श्वास तेरा आना जाना
पल पल मेरा तुम में समाना
पलकों की मधुर उठन झुकन
तुम बिन ना भाए जीना
हुआ ये जीवन तेरा आवन जावन
विरह वेदना के संग संग
प्रिय हुआ निशचिंतता का
मधुर आगमन
बरसो रे मेघा मेघा
बरसो

कारे कजरारे नयनों से
जाम पे जाम पी कर
मदहोश हुआ मेरा अंतस
बाहर भीतर भीतर बाहर
मनमौज लहरों में भर कर
झूम उठा संगिनी में तेरा
अद्भुत प्रेम का मनमोहन

देखो मोहन भीग रही हूँ
बूँद बूँद में महसूस कर
तुमको ही जीने लगी हूँ
तुम कारे बदरा नेह भरे
मैं धरा प्यासी
तुम्हें पी रही हूँ
माँग में सगरे रंग भरे हैं
माथे बिंदिया चमके
तेरी छुअन से रंग भीने
महकने गाने नाचने लगी
पग घुंघरू की थिरकन
अधरों पे संगीत सजा
तेरे नयनों की मुस्कन
मेरे अधरों में भर कर
नयनों से छलकने लगी हूँ
तुम आए हो सावन बन कर
महक गई मैं मिट्टी हो कर
बह रही बूँद बूँद
तेरे स्नेह की कतरा बन कर
नीलगगन से परे तुम
उतर रहे श्याम मेघ बन कर
तकती थकती नहीं ये अखियाँ
पवन है या तुम हो मधुकर
भीगा सावन भीगा मधुबन
भीगी मैं भीगे तुम
तुमने जो छुआ कारे घन
भीगा तन भीगा ये शुष्क मन
कारे कजरारे नयनों से
जाम पे जाम पी पी कर
मदहोश हुआ मेरा अंतस
बाहर भीतर भीतर बाहर
मनमौज लहरों में भर कर
झूम उठा संगिनी में तेरा
अद्भुत प्रेम मतवाला मोहन

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