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उलझे दुई चंद्र चकोर नैना , आँचल सखी जु

उलझे दुई चंद्र चकोर नैना।
छकत नाही प्रेम सुधा पीबत,पीबत पीबत थकै ना।
भरयौ रहवै प्रेममद सो,बहवत प्रेम सु नैना।
ढूरत पडत अंग लगत,हँसत छुवत बोलत प्रेम बैना।
अधर सु अधर मिलावत,नयनन सो दुई नैना।
जानत नाहि दिवस कब आवत,कबहु जावत रैना।
बिसरत सबहि सुध बुध तन की,कबहु संग बिसरत दैना।
कहत बनै न दुई देख्यौ,बसत एक हिय दुई देही।
एकहु नैन बैन सब एकैहु,एकहु प्रेम को लौना।
-- आँचल सखी जु

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