"सफर के कुछ पल हमारे साथ चलकर तुमने
पलपल के लिए अपना मोहताज कर दिया"
ना करना मोहब्बत हमसे
हम तो एक तरफा मोहब्बत
भी दिल से ही करेंगे
जज्बात से ना खेलना मेरे
हम सपनों में नहीं
हकीकत में इश्क करेंगे
तेरी बेरूखी ना आई रास
तो रूस्वाईयां होंगी
रूस्वा हुई महोब्बत से
हम जिंदगी रफू कर लेंगे
लुत्फ़ !!
ना छूने में ना देखने में
ना गुफ्तगू में है
सारा लुत्फ़ सिर्फ उसे
सोचने में है
सोच कर तुम्हें जी लेंगे
मिल कर बिछड़ने में मज़ा नहीं है
लफ्ज़ बयान होते रहे
मेरे मेरी आँखों से
वक़्त के साथ साथ
कुछ मिलने के जुड़ते रहे सिलसिले
हवाएं पूछती हैं
आते जाते उनके बारे में
वो जो जुदा हुए
हमसे तो ख्वाबों में भी ना मिले
तुम नहीं
चाँद नहीं सितारे नहीं नींद नहीं
आँखो में अश्क़ों के सिवा
कुछ तो चलने का भी काफ़िला अब चले
मन की ये बेचैनियाँ
शब्दों का ये मौन
आँखों की वीरानियाँ
तुम बिन समझे कौन
क़रीब आने की कोशिश तो मैं करूँ लेकिन
हमारे बीच कोई फ़ासला दिखाई तो दे
क्या कहूँ मैं मोहन तुमसे
कब से नाता मेरा तुम्हारा
कब से जानूँ मैं तुझको
कब से बना ये रिश्ता हमारा
जब से यह दिल बना
इस दिल में तू बसा
जब जब चलती हैं सांसें
नाम लेती क्यों तुम्हारा
जब जब छवि तेरी निहारी
नयन क्यों अटक गए
क्या जानूं मैं मनमोहन
कब से है तेरा पंथ निहारा
रोज़ उठती हूँ
यादों के दलदल से
माँझी देता है
मुझको धंसा
जैसे होता था मद्धम
आस का दिया
लेती दिल का जला
ख़्यालों के जंगल में
अब तो होने लगी
गुमशुदा
बेकरारी चरम पर पहुँच जायेगी
सर्द चलती रही
गर हवा
हमने दिल को बिछाया तेरी राह में
मेरी गलियों में आ ज़रा
तुमको जबसे मनाने लगी हूँ
तबसे हो जाते हो तुम
रोज़ ही खफा
देखो मनमोहन
यूँ इश्क ना निभेगा
गर रहा एकतरफा
प्रेम में उसूल नहीं बेशक
पर मिलकर बिछुड़ना भी
है कैसी जफा
मिलन विरह विरह मिलन
खेल ना समझो
ले ले ना कहीं ये जां
आपको भूल जाने का हौसला
न था,न है,न होगा
तू जुदा दूर रह कर भी
न था,न है,न होगा
आपसे मिलकर
किसी और से क्या मिलना
कोई आप जैसा
न था,न है,न होगा कभी
"पहले रिमझिम,फिर बरसात,और अचानक कड़ी धूप...
मोहब्बत और जुलाई की फितरत में सितम हैं खूब!!!"
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