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पुष्प रूप श्याम , अमिता बावरी जु

आज बाँवरी सोच रही है श्री जू का श्रृंगार किस प्रकार से करूँ। श्री जू की सेवा के लिए अलग से भाव हो रहे हैं। चलो कुछ पुष्प ही चयन किए जाएँ। जिस भी पुष्प वृक्ष पर दृष्टि जा रही सबकी शाखाएं जैसे उन्मादित सी हो रहीं झुकी सी जा रहीं इस होड़ में की स्वामिनी जू की सेवा में पुष्प यहीं से चयन हों । हर और उन पर न्योछावर हो जाने की होड़ सी हो जैसे। मन में यही विचार की कौन से पुष्प चयन किये जाएँ । तभी सहसा क्या देखती है हर पुष्प में कान्हा जू की छवि ही प्रतिबिम्बित हो रही है। जिस भी पुष्प को हाथ लगा रही वही कान्हा सदृश्य हो रहे हैँ। आह हर और प्रियतम जैसे अपनी प्रिया के श्रृंगार हेतु ही पुष्प बन मिल्न की प्रतीक्षा में हों। बाँवरी सी हुई सम्भालती हुई कुछ पुष्प ले जाती है। जब इन पुष्पों से हार पिरोने लगती है फिर से उनमें कान्हा जू ही प्रतिबिम्बित हो रहे। सब विचित्र सा अनुभव हो रहा । जावक रचना की तयारी में लगती है तो तूलिका भी प्रियतम ही बन जाते। वस्त्र सहेजने लगती तो आज प्रियतम अपनी प्रिया के वस्त्रों में भी दिखाई पड़ते। प्रिया जू के लिए की जाने वाली प्रत्येक चेष्ठा में प्रियतम ही दिखाई दे रहे। कितनी अद्भुत प्रेम की स्थिति है की अपनी प्रियतमा का आलिंगन करने हेतु प्रियतम हर और से उसे स्पर्श सुख देने को लालायित हो रहे हैँ । जय हो इस  अद्भुत प्रेम की । जय जय श्री राधे

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