जान कर उससे ठगी है राधिका।
श्याम की इतनी सगी है राधिका॥
आंख में अरुणाभ डोरे कह रहे हैं,
रतजगी या रति-जगी है राधिका॥
देह से यह प्राण तक है, रसोवैस:
उस रसिक के रसपगी है राधिका॥
गौर-श्यामल द्वैत में अद्वैत लगती
उस विरल रंग में रंगी है राधिका॥
बावरी-सी कुंज गलियों में भटकती
नेह की क्या लौ लगी है राधिका॥
उमड़ता घनश्याम उसके अंक सिमटी
बीजुरी-सी जगमगी है राधिका॥
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...
Comments
Post a Comment