आवत है थिरत-थिरत गिरधारी
ओ सखी , कर लो सब तैयारी ।
मोरे नैनन में कजरा लगा दियो ।
मोरे अधरन पे मधुरस सजा दियो ।
नैनन कर सु ढकट सखी ,
मोरे नैनन पट भी लगा दयो ।
देखूँ कैसे या छब पी की ,
मोरे अंजन को तनिक गहरो बहा दयो ।
आवे पिया , और छुवे पिया ।
खेलत खेलत जीवे पिया ।
न खोलूँ आज पलकन री
भीतर रहूँ दरस तरसन री ।
देखत लगूँ पिय छब जब जब
पिय न खेलत अपनों नेह
सुनत विनय मोरे नैनन जो न कहत
करत तब पिय वही लीला री
मेरे उर बसी जो प्रेम फुलवारी
सो न आज देखूँगी ।
पिय संग नैनन न खोलूँगी ।
आवेंगे जब तब सब अर्पण कर दूँगी
नैनन को नैनन में ना पिरोऊगी ।
पिय करो निज मन की
मेरे नैनन खुलत रस सब नैनन उलझत री ।
ना , ना सखी पिय बिन देखत मैं न रहूँगी ।
देखन की चाह को भी समेटूँगी ।
तू संग रह मोरे , कानन रूप सुनाय दीजो ।
नैनन को वाणी श्रवण दरस कराय दिजो ।
जो खुलत लगे नैन मोरे , तनिक मोहे चुटकी दबाय दिजो ।
कर विनती सखी पूर्णमासी सु ।
हाय , देखत बिन पिय रह सकूँ क्यों ?
पिय सुख हेत रूप दरसन न करनो ,
पिय रूप देखत बिन जीवत ही दाह में जलनो ।
छुवत शीतल कर सु हरि , न लागे भीतर को ताप ओ मोरे हरि !!
--- सत्यजीत तृषित ।।
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