यह प्रृकृति द्वारा,युगल सेवा के लिए बनाया गया सुन्दर स्नानगृह ही है मानो....
दोनो ओर गहरे हरे,बडे बडे,घने वृक्षो का वन....
और बीच मे दो तीन हाथ नीचे उतर बहती यमुना...मध्यम सा प्रवाह.....
और इन सुकुमारीयो की नाभी से कुछ उपर तक आता जल....मानो सुंदरता पूरी जी जान लगा दी।
आज श्री प्रियाजु सखियो संग यहा स्नान को आयी है,जल मे कुछ ही सखिया है....शेष बाहर बैठ कुछ कार्य करती हुई,इनकी जलक्रीडा को देख देख रीझ रही।
प्रियाजु व सभी सखिया बहुत हल्की व पतली साडी पहने हुए....
जो बिलकुल अंगो से चिपक गयी है।
श्यामाजु के केशो को पुष्पो की एक लडी द्वारा बाँध रखा सखियो ने,मुकुट के स्थान पर यही शोभा दे रहा....
इससे इनके केश कुछ खुले से ही है.....
सखियो ने एक मण्डल बना रखा है श्रीजु के चारो ओर व दो सखियो ने इनके दोनो को थाम रखा है.....परम गोपनीय निधि के जैसे....वही प्रियाजु भी अपनी कोमल अंगुलियो से पकड रखी है।
बाकी सखियाँ अंजुलि मे जल भर-भरकर श्यामाजु पर डाल रही है ,जिससे श्रीजु हँसते हुए मुख को इधर उधर कर बचने का प्रयास कर रही है....
जब जल इनके मुख को छू झर जाती है तब इनकी पलको,कपोलो व अधरो पर कुछ जल बिंदु ओस कण की तरह छूट जाते है और चम चम करते हुए अपने सोभाग्य पर इतरा रहे है.....
तभी श्रीप्रियाजु के केशो को बाँध रखी वह पुष्पमाल टूट गयी.....
ओर दो लंबी लंबी लटाए अधरो तक आ इन ओस बिंदुओ को पी गयी.....
वही श्रीजु के ये कोमल,मुलायम केश मुक्त हो गये,जल के उपर लहराने लगे.....
एक सखी इन केशो की संभाल करने आयी व बहुत हल्के से पकड जूडा बना दी....किंतु ये इतने मुलायम है की उसके हटने से पहले ही खुल गये.....
तब उसने अपनी वेणी मे लगी रेशमी डोर को खोल उससे प्रियाजु के केशो को बाँध दिया.....
पुनः सब उसी प्रकार खेलने लगी....
इतने मे एक सखी सोची ऐसे सुन्दर समय लालजु जाने कहाँ रह गये.....
इस सघन वन मे कोई ये सब दृश्य देख मौन कब तक रहता....
वह जल के भीतर भीतर श्यामाजु के निकट बढे.....
किंतु जल इन्हे न छिपा सका,सखियो की तेज नजर से कैसे बचते?
इससे पहले की श्यामसुन्दर श्रीजु तक पहुचे ,सखियो ने नया कौतुक किया......श्यामाजु को उसी प्रकार मध्य मे ले,एक दूसरे का हाथ पकड प्रियाजु के चारो ओर गोल गोल घूमने लगी.....
अनेक चेष्टाए करके भी लालजु किसी प्रकार श्यामाजु के समीप न पहुच सके....
तब श्यामसुन्दर जल मे सब सखियो के समक्ष खडे हो गये.....और श्रीजु के अंगो से जल मे घुलकर आने वाले अंगराग से पीले हुए जल की अंजुली भरकर बडी ही तत्परता से पी गये.....
यह देख सखियाँ अत्यंत प्रेममग्न हो सामने से हट गयी व श्यामसुन्दर को प्रियाजु के समीप जाने दी......
एक सखी श्यामसुन्दर का मुकुट व बंशी लेकर बाहर सखी को दे देती है।
सखिया श्यामसुन्दर के कर मे प्रियाजु के दोनो कर द देती हैे......
अब मध्य मे युगल व चारो ओर गोल मण्डल बना सखियाँ........
बाहर बैठी सखिया भी जल मे उतर आयी व उसी प्रकार गोलाकार कई मण्डल बना लिये सबने......
बाहर बैठी एक सखी ने वीणा ले गायन आरंभ किया......
मध्य मे युगल नृत्य करने लगे,चारो ओर की सखिया उसी प्रकार एक दूसरे का हाथ थामे गोलाकार मे घूमने लगी.....
एक पंक्ति दूसरी पंक्ति की विपरीत दिशा मे घूम रही है.....
जमुना मे सखियो रूपी पंखुडियो के कमल के मध्य पर युगलकिशोर नृत्य कर रहे है।
नृत्य आनंद के बाद पहले श्यामसुन्दर जल के बाहर आये फिर हाथ पकड श्यामाजु को बाहर किये...
व फिर उसी प्रकार सखियो को....
सब यू ही गीले वस्त्रो से इस सघन वन मे गुम हो गये.......
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...
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