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श्यामा भई श्याम , आँचल सखी जु

कुंज की पवन कुछ बदली बदली सी है,आश्चर्य मे है ये भी....सब सखियो के जैसे।
यू तो सदैव श्यामसुन्दर अपनी प्राणेश्वरी का साज श्रृंगार करने को ललायित रहते है,करते है।
किंतु आज,आज प्रियाजु अपने प्रियतम का श्रृंगार कर रही है।
हाय! कितना अद्भुद है न,लालजु के ह्रदय मे प्रेम,आनंद सब एक साथ उमड रहा है।इनके नयन कुछ छिपने कहाँ देते है.....
किंतु ये क्या श्यामा सबसे पहले अंगुली पर काजल ले काजल ही लगाने चली....
सामने आ जैसे ही काजल लगाने लगी मोहन कलाई पकड लिये श्यामा की और बोले---- प्रिये श्यामा,आज तुम मुझे राधा बना दो न....
राधेजु,विस्मित होते हुए इनकी ओर देख बोली......अरे!राधा बना दू.....
फिर कुछ मौन रहकर कही....तुम भी राधे हो जाओगे परंतु राधे बिना मोहन कैसे रहेगी....
ऐसा करो तुम पहले मुझे मोहन बना दो...तब मै तुम्है राधे बना दूगी....
मोहन मान गये...
अब श्यामसुन्दर श्यामा को मनमोहन बनाते है....
हरे रंग का घूमदार कुरता पहनाकर हल्के नारंगी रंग की पगडी बाँध दिये....
श्यामाजु के केश  श्यामसुन्दर से अधिक लंबे है ,किंतु अपनी कुशलता से श्यामसुन्दर ने इनको मोडकर जाने कैसे पगडी के नीचे कर दिया।इससे ये कंधे से कुछ नीचे तक ही आ रहे...
बंशी भी ले ली.....कुछ देर तक श्यामसुन्दर एकटक देखते ही रह गये....फिर कुछ समय बाद बोले....लो राधे,बन गयी तुम श्यामसुन्दर।
अब मुझे राधा बनाओ.....
श्यामा मुस्कुराते हुए चली श्यामसुन्दर को राधा बनाने.....
लहंगा चोली,आभूषण,चंद्रिका,माथे पर बडी सी सिंदुर की बिंदिया,खूब सारे नुपुरो की पायल.....
और रेशमी धागो से बनी लंबी सी चोटी.....
अब सिर पर पल्लू सजाया।
अहा!सज गये....
श्यामा,श्याम और श्याम,श्यामा हो गये....आज मोहन गौर  और श्यामा श्याम वर्ण हो गयी.....
श्यामाजु जो अब श्यामसुन्दर है अपनी प्रिया की बाँह पकड उनको दर्पण दिखाने ले चली....पीछे पीछे सब सखियाँ भी चली।
जल के सामने खडे हो युगल ने जल मे अपने इस मोहक रूप को देखा फिर एक दूसरे को देख मुस्कुराये....
अब युगल समीप के ही एक वृक्ष की नीचे बैठे।
(श्यामा)श्यामसुन्दर बंशी बजाने लगे।
और(श्याम)श्यामा नैन मूंद अपने प्रियतम के घुटने पर सर रखकर बंशी मे खोने लगी।
तभी बंशी बजनी बंद हो गयी (श्याम)राधेजु ने नयन खोल (श्यामा)मोहन की ओर देखा.......
(श्यामा)श्यामसुन्दर ने अपने कोमल कर अपनी (श्याम)प्रिया के नयनो पर धर नयन मूंद लियेे.....और नयन बंद ही रखने को कहे।
बडी ही शीघ्रता से (श्यामा)मोहन जाकर एक बडे से वृक्ष की ओट मे छिप गये।
इधर वृक्ष के नीचे बैठी श्यामा बार बार पूछ रही--- आँखे खोलू श्यामसुन्दर?
कोई उत्तर न मिलने पर व्याकुल हो नयन खोले,प्रियतम को सामने न पाकर व्याकुल हो , मोहन!मोहन! पुकारने लगी.....
इधर उधर वृक्षो के पास दौडती हुयी हा! प्रियतम कह रोने लगी।
अधीरता बढी और स्वयं को न संभालकर नीचे भूमि पर ही निष्प्राण सी हो गिर पडी....
सखिया दौडती हुयी आयी (श्यामसुन्दर)श्यामा की इस विचित्र दशा को सम्हालने के प्रयास करने लगी।
उधर ये सब देख (श्यामा)मोहन बंशी मे स्वर पुकारे....
बंशी सुनते ही श्यामा मे प्राण आ गये,वे दौडकर वंशीध्वनि की दिशा मे वृक्ष के पीछे पहुची।
वहाँ,(श्यामा)मोहन कै नयन भी बह रहे।
(श्याम) राधे..कान्हा,कान्हा कहकर मोहन से लिपट गयी।
दोनो अश्रु बहा रहे है,तभी श्यामा धीरे से मोहन के कान मे बोली.....तुम श्यामसुन्दर हो।
सुनकर लालजु कुछ हटकर विस्मय से श्यामाजु को देखते है।
दोनो मुस्कुराते हुए एक दूसरे की बाँह थामे भीतर निकुंज मे चल दिये......

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