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झूलन भाव आँचल सखी जु

झूलन भाव आँचल प्यारी सखी जु

नंदभवन मे आज इतनी भीड,मेला सा लगा है यहाँ....
हर ओर विवाहित,अविवाहित गोपियो के समूह....यहाँ,वहाँ खडी हो हसती बाते बनाती ग्वालने....
मैय्या तो जाने कहाँ व्यस्त है।
मैय्या ने आज झूलन के लिए सारे व्रज की गोपियो को ही न्यौता दे दिया.....
और एक अत्यंत लाड से भरा न्यौता वृषभानु लली को श्रीराधा को....
वही दूसरी ओर कुंज मे श्यामसुन्दर की प्रतिक्षा मे.....
इतने सुंदर झूलन उत्सव का समय.....
किंतु प्रियाजु चुपचाप इस वृक्ष के नीचे बैठी है,सखिया बार बार आग्रह कर रही झूलने चलने को....किंतु आज श्यामा मान कर बैठी हैै....
सखिया बार बार पूछती है श्यामा कोई उत्तर ही नही देती.....
सभी सखिया जानती है इस मौन का कारण किंतु श्यामाजु का मन बहलाने को सब बाते बना रही.....
श्यामसुन्दर अब तक न आये.....
कुछ सखिया द्वार पर खडी है,श्यामसुन्दर आये...
आते ही सखिया श्यामाजु का सब हाल कह देरी का कारण पूछी.....
मनमोहन कुछ अस्पष्ट सी बाते कहते है। कभी कहे मैय्या ने न आने दिया,कभी कहे मैय्या ने पूजा विधान मे उलझाया।
श्यामसुन्दर श्रीजु को मनाने के लिए और अपने सेवा लोभ के लिए ही स्वयं झूला सजाने का आग्रह करते है सखियो से.....
सबसे पहले ये इस कुंज का सबसे सुन्दर स्थान ढूंढने चले....
और लो ढूंढ लिये,ये दो वृक्ष जिनके मध्य मे तो अन्तर है....किंतु उपर से इसकी दो शाखाए एक दूसरे से मिल रही है।
इसी वृक्ष की दोनो डाल पर सुनहरी डोर से झूला डाला गया।
बीच मे जो बैठने का पाट है इसमे सिराहना भी है।
अब श्यामसुन्दर ने सज्जा का कार्य प्रारंभ किया।
सबसे पहले तो मोर पंख को सिराहने पर ऐसे लगाये की लग रहा मानो कोई मोर नृत्य के लिए पंख फैला खडा है।
अब हरे हरे पत्तो की मालाए बना डोर पर लपेटी ,फिर श्वेत व पीले पुष्पो की मालाए बनाकर....और इन पुष्पो की मालाओ मे भी मोर पंख लगा दिये....
यू झूला तो सजा दिये मोहन....
अब श्यामाजु को मनाना है।
आगे आगे श्यामसुन्दर व पीछे पीछे सखिया....
श्यामसुन्दर श्यामाजु को मनाने की कितनी ही चेष्टाए कर रहे किंतु श्यामाजु न मानी....
ये श्यामाजु के समीप बैठ दोनो हाथो से श्यामाजु का कर पकड लिये.....
कहे,राधे एक बार झूलन चलो न....
स्पर्श से श्यामाजु का मान छूट गया किंतु फिर भी मना कर दी श्यामा ने झूलने को.....
तब अत्यंत दीन से बन श्यामसुन्दर कहते है राधे एक बार अपनी प्रेमपूर्ण दृष्टि से हिंडोले को निहार तो लो....
फिर जो दंड देना हो दे देना....
सखिया भी कहती है,हा राधे श्यामसुन्दर बहुत सुंदर हिंडोला सजाये है चलो भी....
बाद हम सब मिलकर इनको खूब छकावेगे।
सुनकर श्यामाजु श्यामसुन्दर संग चली.....
हिंडोला अपूर्व सुंदरता लिये,श्यामसुन्दर जो सजाये अपनी प्राणप्रिया के लिए...
देखते ही श्यामा मुस्कुरा दी....
अब श्यामसुन्दर श्रीजु को पकड हिंडोले पर बैठाए....
और स्वयं झुलाने लगे....
कुछ देर झुला सब सखियो को भी ये आनंद प्रदान करने को श्यामसुन्दर श्रीप्रियाजु संग हिंडोले पर बैठ गये.....और सखिया झुलाने लगी...
देखो न आन्नद मे डूबते डूबते युगल पीछे सिराहने से लग बैठ गये....
और सखिया इस अानंद को निहारने लगी।
जब झूला तेजी से पीछे जाता तो सिराहने लगे मोरपंख छत्र सा बना युगल पर छा जाते...
दोनो ही छिप जाते और इतने मे ही सखिया आगे पीछे हो युगल को हर ओर से निहारने की चेष्टाए करने लगती...
कुछ सखिया पीछे झूला झुला रही है और कुछ आगे किसी वृक्ष के सहारे खडी हो वृक्ष की ही भाति युगल को निहार रही।
कोई कोई तो किसी सखी के काधे पर सर टिका नयन मूंदे खडी.....
सखिया चारो ओर से  पुष्पो की पंखुरियो की युगल पर वर्षा कर रही.....

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