Skip to main content

हिय सेज आज हिंडोला बनी , तृषित

हिय सेज आज हिंडोला बनी
नव बना-बनी मन कुँजन चली

भाव रूपिणि सखी हिय तरंग डोर  हिलावत
हृदयराज स्वमनमोहिनी नैनन निरखत झुलत

मन मेरो कुँजन तन वृंदावन
हिय सेज नित् राचत मोहन
प्रिया बिन न द्वार नैन न खोलत
प्रिया संग आवें तब रंग नव रस उमड़त

अब आओ मोहना
हिय झूलन झुलाऊँ
हिय झुलत युगल
ऐसो दर्शन पाऊँ
वृंदा पर्श होवै वन बन जाऊँ
मन नव कुँजन नव रंग बनाऊँ
रस-नागरी तोहे प्रिय-रस में रीझाऊँ श्यामा रस लावै ऐसे प्रियतम को हिय बसाऊँ
माधव तुझे युगल देखत ही शीश नवाऊँ

हिय अरविन्द बसो युगल रसराज
हिय नित नित रस उमड़े यो ही मेरो काज
--- सत्यजीत तृषित ---

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...