हिय सेज आज हिंडोला बनी
नव बना-बनी मन कुँजन चली
भाव रूपिणि सखी हिय तरंग डोर हिलावत
हृदयराज स्वमनमोहिनी नैनन निरखत झुलत
मन मेरो कुँजन तन वृंदावन
हिय सेज नित् राचत मोहन
प्रिया बिन न द्वार नैन न खोलत
प्रिया संग आवें तब रंग नव रस उमड़त
अब आओ मोहना
हिय झूलन झुलाऊँ
हिय झुलत युगल
ऐसो दर्शन पाऊँ
वृंदा पर्श होवै वन बन जाऊँ
मन नव कुँजन नव रंग बनाऊँ
रस-नागरी तोहे प्रिय-रस में रीझाऊँ श्यामा रस लावै ऐसे प्रियतम को हिय बसाऊँ
माधव तुझे युगल देखत ही शीश नवाऊँ
हिय अरविन्द बसो युगल रसराज
हिय नित नित रस उमड़े यो ही मेरो काज
--- सत्यजीत तृषित ---
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