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हरियाली तीज भाव , संगिनी सलोनी जु

"मैं तो श्री वृन्दावन जाउंगी,प्रिया प्रियतम को झूला झुलाऊँगी।
रेशम की डोरी का झूला बनाउं,सोने चांदी की पटरी बनाउंगी।।
कदम्ब वृक्ष पर डालूंगी झूला,सब गोपी ग्वाल बुलाउंगी।।
लाड़ली लाल को झूला झुलाऊं,उन्हें निरख निरख सुख पाऊँगी।
'चन्द्रसखी' भज बालकृष्ण छवि,आनंद मंगल गाऊँगी।
मन मंदिर में उन्हें बिठा कर, नैन के पाट लगाऊँगी।।"

आज हरियाली तीज पर हरी भरी बेल लताओं के मध्य हरि और राधिका जु सखियों संग खूब प्रसन्नचित्त बैठे हैं।सभी सखियों ने आज गहरे हरे रंग के ही वस्त्र धारण कर रखे हैं।सब ओर हरी हरी मेहंदी की पत्तियों की महक बिखेरती सखियां कोई उन्हें पीस रही है तो कोई घोल रही है।कहीं कोई सखी तुलिका तैयार कर रही है तो कहीं कोई श्यामा श्यामसुंदर जु के लिए हरे रंग की ही बेल व पुष्पों से सुंदर झूले का निर्माण कर रही है।अद्भुत हरा भरा महका सा वातावरण पूरे निकुंज का आज श्रृंगार ही किए हुआ है।हिना की महक से महकी पुरवाई केवल निकुंज को ही नहीं अपितु पूरे संसार को ही हरियाली तीज के उपलक्ष्य पर प्रिया जु के दर्शन का न्यौता दे रही हो जैसे।सब उन्माद से हरा भरा सा है।एक गहरा उल्लास है आज हर खिलखिलाते चेहरे पर।आज पिया प्यारी जु अत्यधिक उत्साह से भरे हैं।श्यामसुंदर जु आज अपने हाथों से प्रिया जु का श्रृंगार करेंगे।
इस सब चहल पहल के मध्यस्थ एक सखी जो उदास सी निकुंज के द्वार पर खड़ी सब निहार रही है ना जाने क्यों भीतर आने से आज सकुचाई सी है।हर एक नए दिन के साथ उसका एक नया उत्साह और अह्लाद सबको नज़र आता है।एक नए से श्रृंगार रस में डूबी हर दिन वो कुछ नया सा ही जी रही होती है।हर किसी को उसका ये नव नवीनतम उन्मादुल्लास भाता भी है।
पर ना जाने आज इस उत्सव की घड़ी पर ही उसका ये नवनवायमान उन्माद खोया सा क्यों है।सब सखियों की तरह ही हरे वस्त्र पहने ये सखी द्वार पर हाथों में प्रिया जु के लिए प्रेमरंग में डूबी लाल रंग की चोली और हरी चुनरी व लहंगा लिए खड़ी है।दूसरे हाथ में श्यामा श्यामसुंदर जु के आभूषण व श्रृंगार का सब साज सामान है।नम आँखों से ये प्रियाप्रियतम जु को एक टक निहार रही है।मिलन की घड़ियों में भी इसे उत्सव के बाद का बिछुड़ने का समय ही परेशान करता रहता है।विरहनी मिलन के मधुर क्षणों को हृदय में उतार कर विरह के विषादित अश्रु बहाती रहती है।
सखियां व श्यामा जु इसकी इस विदशा को भलीभाँति जानतीं हैं।उनको ज्ञात है कि ये पगली जो हर समय सबके समक्ष हंसती गाती मुस्काती खुशी से थिरकती रहती है ये भीतर एक गहरा विरह छुपाए हुए है जो इसकी आँखों में भी सैलाब बना पर बंधा सा ही रहता है।जब कभी वो लावा बन हृदय में दहक उठता है तो इसकी आँखों से जैसे बाँध तोड़ कर शीतल पर शांत भवंडर सा फूट पड़ता है।तब ये जैसे एक डरे सहमे से बच्चे की तरह ही किसी स्नेहीजन का आलिंगन ही चाहती है ताकि बस कुछ समय उनके आगोश में बैठ भीतर के तूफान को रो रो कर बहा सके।पर उसका ये दर्द उसके हृदय में ही उबाल खाता रहता है और आँखों की खामोशियों में दबा हुआ रोम रोम को कम्पित करता पर अधरों की झूठी मुस्कान से जाहिर होता रहता है।
सखियां इसे भीतर आने के लिए पुकार रही हैं और ये उनकी अवज्ञा ना करती हुई यंत्रचालित सी ही आ तो रही है पर इसकी आँखें आज इसके हृदय के भावों का साथ नहीं दे रहीं।आकर वस्त्राभूषण धर ये वहीं सखियों संग बैठ सेवा में उनका हाथ बंटाने लगती है।
कभी राधासखी तो कभी कृष्ण संगिनी इस सखी को श्यामा श्यामसुंदर जु कभी दो नहीं नज़र आते।ये दोनों को एक ही रूप देख पाती है।समक्ष अपने भाव से कभी ये श्यामसुंदर जु को ही देखती है या फिर कभी राधे जु को।राधे जु को सामने देख श्यामसुंदर जु के लिए विरहित तो कभी श्यामसुंदर जु को समक्ष देख श्यामा जु को खोजती इसकी दर्शन पिपासु आँखें विहरित लालायित सी ही रहती हैं।इसकी भावदशा को समझ पाना किसी भी के लिए इतना सरल नहीं हो पाता।कभी तो खुशी में चूर तो कभी ना जाने किस गम में डूबी ये विरहन कभी महकती सी तो कभी अपने ही भावों से दहकती प्रतीत होती है।
अब आज ऐसे खुशी के अवसर पर भला कोई सखी उदासीन रहे ये श्यामा श्यामसुंदर जु को कैसे रूचे।श्यामसुंदर जु जो श्यामा जु के हाथों पर मेहंदी रचा चुके हैं अब सब सखियों को भी एक एक कर अपने पास बुलाते हैं और श्यामा जु के कहने पर सब सखियन के हाथों पर अपने नाम उकेरने लगते हैं।प्रियतम श्यामसुंदर जु किसी के हाथों पर राधे तो किसी के हाथ पर कृष्ण लिख कर उनकी हाथों की मेहंदी में चार चाँद लगाते हैं।
बिरहन सखी के हाथों पर जैसे ही मनमोहन श्यामसुंदर'श्यामा श्यामसुंदर'नाम अंकित करते हैं वैसे ही ये रोमांचित हो उठती है।इसके नम नेत्रों से अब प्रेम भरी वही हंसी की फुहारें अधरों को छू जाती है जो सबके हृदय को छू जाती है।पगली अब पहले की दशा से बिल्कुल विपरीत हो उन्मादित हो उठती है और झट से श्यामा श्यामसुंदर जु के सेवायित सखियों संग मंगल गीत गाती हुई नाचने लगती है।प्रियाप्रियतम जु को आनंदित देख सब सखियां इस उन्मादिनी का कोई वाद्य बजाकर या मधुर गीत गा गाकर साथ देने लगती हैं।निकुंज में नाच गान और गीत संगीत की ध्वनियों से विवाह महोत्सव जैसा माहौल बन आया है।
युंही मदमस्तानी सखियों के बीच बैठे श्यामा श्यामसुंदर जु कभी सखियों को तो कभी एक दूसरे को निहार रहे हैं।सांझ ढलने को है।अब सब सखियां श्यामा जु का श्रृंगार कराने के लिए नाच गान बंद कर देती हैं।श्यामा जु उसी बिरहनी के लाए हुए वस्त्र पहन कर आतीं हैं और श्यामसुंदर जु अपने हाथों से उन्हें सभी आभूषण बड़े प्रेम से पहना रहे हैं।सखियाँ श्यामसुंदर जु की सहायता कर रही हैं और ज्यों ज्यों सुकुमारी श्यामा जु सज धज रहीं हैं वे उनकी बलाईयाँ ले रही हैं।श्यामा जु तो वैसे भी इतनी सुंदर हैं पर आज स्वयं श्यामसुंदर जु जब उन्हें सस्नेह श्रृंगारित कर रहे हैं तो क्या कहने।अद्भुत छटा है और एक अजब नूर जो श्याम जु के संग होने से प्रिया जु के रोम रोम से सुवासित हो रहा है।विलक्षण प्रेम और तत्सुख के भाव से ओतप्रोत श्यामाश्याम जु का निराला व्यवहार।आहा।।श्यामसुंदर जु ने बहुत ही सुंदर श्रृंगार कर दिया है श्यामा जु का और अब सखियों के आग्रह पर वे खुद भी सुंदर वस्त्र पहन कर आते हैं व सब सखियाँ उनका हारश्रृंगार कर उन्हें श्यामा जु के साथ झूलोत्सव के लिए ले चलती हैं।
प्रिया जु की चूड़ियों की खनखनाहट व पायल की रूनझुन सुन प्रियतम मंत्रमुग्ध से हैं।उनके माथे की बिंदिया की चमक व माँग का सिंदूर पिया जु को उनकी रूप माधुरी पर से नज़र ही नहीं हटाने दे रहा आज।श्यामसुंदर जु की प्रेमरंग रंगी चुनरी व श्यामा जु की अंगिया भी उसी प्रेमरंग में डूबी है।उनके हरे वस्त्र आज दोनों को कभी एक और कभी दो कर रहा है।
सब प्यारी सखियाँ आज तीज उत्सव पर पूरे उत्साह से श्यामा श्यामसुंदर जु को बारी बारी से झूला झुला रही हैं और उनके प्रेमसमुंद्र में डुबकी लगाती हुईं त्योहार के प्रेमरंग को और और गहरा कर रही हैं।आनंद बरस रहा आज मधुबन में।सभी एक दूसरे को तीज की बधाई देते बधाई गीत गा रहे हैं और श्यामा श्यामसुंदर जु को घेवर व सेंवी का भोग अर्पण कर उनकी मिलन वेला की घड़ियों का इंतजार कर रहे हैं।
इतने में आसमान में बादल गरज उठते हैं और मंद मंद बरसात होने लगती है ज्यों आज के इस दिव्य तीज के त्योहार पर समस्त देवी देवता भी श्यामा श्यामसुंदर जु को कोमल पुष्प वर्षा कर अपना योगदान दे रहे हों।श्यामसुंदर जु ऐसे अवसर पर खुद श्यामा जु को झूला झुलाने लगते हैं और सब सखियाँ फिर से वाद्य मृदंग बजाकर मधुर संगीत गाती हुईं श्यामा श्यामसुंदर जु को रिझाने लगती हैं।

"सावन तीज सुहावन कों सखि,
             सोहैं दुकूल सवै मुख साधा।
देखे सुने कहते न बनैं,
           उमंगैं उर में अनुराग अबाधा।।
प्रेम के हेम हिंडोरन में,
            सरसै-बरसै रस-रंग अगाधा।
राधिका के हिय झूलत साँवरो,
             साँवरे के हिय झूलति राधा।।"

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