सब तुमको चोर कहते मोहन
क्या चुराते हो तुम ?
तुम तो चित चोर हो
चीर चोर हो
नवनीत चोर हो
ये सब कहते तुमको
और मैं
हाँ कान्हा
मैं भी चोर हूँ
बहुत कुछ चुराया मैंने
तुमसे जब अलग हुई
तो तुम्हारे पास ही आना था
तुमसे प्रेम करके
पर मुझे प्रेम नहीं हुआ
मैंने सारे जगत का विषय विकार चोरी किया
सब भर लिया अपने में
अपना बना लिया
सम्पूर्ण विश्व में
तुम्हारा ही तो सौंदर्य है
नहीं देखा इन आँखों ने
सब कुरूपता चुरा ली
सब भर ली इन आँखों में
हूँ ना मैं भी चोर
नहीं हुआ समर्पण मुझसे
कुछ सुख नही तुम्हें
और कुछ सुख नहीं
तुम्हारे संसार को
हूँ न तुम्हारे सुख की चोर
नहीं दे पाई
और क्या क्या कहूँ
इस विश्व का सब विषय विकार
सब कुरूपता
सब अवगुण
चुरा चुरा भीतर भर लिए
देखो कैसी चोर हूँ मैं
तुम तो निर्मल मन को चुराते हो
तभी चित चोर हो
लोक लाज भय सब हटाते हो
जीवों से माया का आवरण हटाते
तभी चीर चोर हो
तुम तो सब चुरा अपना प्रेम दान देते हो
मोहन
मेरे पास तो कुछ भी नहीं ऐसा
क्या चुरा सकोगे तुम
जो तुमको सुखी करे
तुमको आनन्दित करे
नहीं कान्हा
मेरी कोई योग्यता ही नहीं है
यहां तुम कुछ चुरा नहीं पाओगे
जाओ
और किन्हीं के पास जाओ
जो तुम्हें सुखी करे
आनंदित करे
तुम्हारे जाने से भी मुझे आनंद होगा
क्योंकि तुम्हारे सुख में ही मेरा सुख
तुम्हारे आनंद में ही मेरा आनंद
तुम रहो
चोर ही रहो
चोरों के सिरमौर ही रहो
प्रेम से सराबोर रहो
-- प्रियाप्रियतम बावरी जु
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