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थे चाँद पर चलते , आँचल सखी जु

थे चाँद पर चलते कभी हम भी तारो को पकडकर......
न मालूम था जल जायेगे इसी चाँद से इक दिन।
न जमी न आसमां किसी के मेहमां न रहेगे.....
के तुमसे मिलके यू बिछड जायेगे इक दिन।
हर ओर राह होगी पर कदम न उठेगे तिल भर.....
ऐसे तन्हा से मोड पर नजर आऐगे इक दिन।
तुम सामने ही होगे मगर दम न होगा मुझमे....
बनके आँसू जिस्म से निकल जाऐगे इक दिन।
न जाने क्यू खता-ऐ-शौक बनके गुजर रही है जिन्दगी.....
खता-ऐ-इश्क की उम्मीद मे ही जहाँ से गुजर जायेगे
इक दिन।
ये न कहेगे की यहाँ मेहरबानियाँ तुम्हारी होती नही.....
तुम्हारी मेहरबानियो के ही सहारे तुममे मिल जायेगे इक दिन।
दीदार की हसरते अब दबाई नही जाती ऐ हुजुर......
उम्मीद है इन्ही हसरतो से तुमको पा जायेगे इक दिन।

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