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जैसे जैसे दिन ढलता है , आँचल सखी जु

साँवरे...
जैसे जैसे दिन ढलता है
मेरे मन की आस ढलती जाती
एक ओर जनम बीता तुझ बिन
एक जनम रात संग आता है
और.......
गहरे काले आकाश मे जब
चंदा तारो संग आता है
मेरे प्रीतम रह रह याद मुझे
सूनापन मेरा दीलाता है
जब कोई दीया बिन बाती के
दीख जाता है मुझको सूना
मुझे कशती का कोई अपनी ही
साथी सा नजर वो आता है
जब देख देख रसता तेरा
मन धीरज खोने लगता है
तू आता है और झलक दिखा
जुगनू सा कही खो जाता है।
कह दो क्या यही सब मिलता है
चाहत मे आशिक को तेरे
या हम से ही कोई खास सनम
मोहब्बत ऐ रसम निभाता है
दीदार नही देना न सही
तबियत से मुझे तलब तो दो
रोगी को दवा न दे सकते
कम से कम जखम हरा कर दो
अब भाता नही है सुकूं दिल को
इस दिल को जखमो से भर दो
साँवरे.....साँवरे....
साँवरे......

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