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अरी सखी देख ना कर्मफल की टोकरी लिए चली हूँ , संगिनी सखी जु

अरी सखी
देख ना कर्मफल की टोकरी लिए चली हूँ
अकेली सुनसान राह भी नहीं
मैं तन्हा पथिक भी नहीं
पर सखी मेरे कर्मफल की टोकरी में से कोई एक भी फल का साहसी खरीददार भी नहीं है कोई।।थक हार पुरूषार्थ से सखी प्रार्थना करने बैठी।
जब कोई तर्क भी ना चला सखी तो अर्ज ही कर बैठी।
मेरी अर्जी भी कोई सुने मुझे आस ही नहीं।
सखी पर मेरे प्राणनाथ मेरे जीवनाधार ने मुझ पापिन की अर्जी स्वीकार भी कर ली और अकारण करूणालय मेरे  प्रियतम श्यामसुंदर ने मेरी कर्मफल की टोकरी भी हर ली
बलिहार सखी मेरे श्याम प्यारे पर और तो और बदले में एक नया जीवनदान भी दे दिया ताकि अब नामजप से अपने जीवन को सार्थक कर कर्मफल की टोकरी को ना ढोने का प्रयास कर अब केवल उनकी अकारण करूणा और स्नेह के भरोसे इस अमूल्य जीवन का सदुपयोग ही कर सकूँ
सखी मैं कहाँ कुछ करने कहने के लायक
करना तो अब सब मेरे प्रभु को ही है
मैं तो दीन हीन मलीन उनके द्वार पड़ी हूँ सखी
वो चाहें तो कंठ लगा लें या चरणों का अनुराग ही दें
मेरी अर्जी अब सिर्फ और सिर्फ उनकी मर्जी
जब कोई नहीं आता
मेरे श्याम आते हैं
मैं डरती नहीं हूँ अब
मेरे घनश्याम मांझी हैं
मैं धन्य हुई प्रभु
जन्मों की व्यथा सार्थक हुई अब
पूजा का अधिकार दे दिया
मुझ अकिंचन को जीवनदान दे दिया
मैं अब और क्या मागूँ सखी
आभार तो करना ही नहीं आया
उन्हें क्या अर्पण करूँ
मेरा तो सर्वस्व प्रिय का

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