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काश यह जालिम जुदाई न होती ,संगिनी सखी जु

"ये कैसा सिलसिला है, तेरे और मेरे दरमियाँ..
फ़ासले भी बहुत हैं, और मुहब्बत भी.."

काश यह जालिम जुदाई न होती
ऐ खुदा तूने यह चीज़ बनाई न होती
न हम उनसे मिलते न प्यार होता
ज़िन्दगी जो अपनी थी
वो परायी न होती
जाने कब से
तुम ही तुम तो समाये हो दिल में
श्वासों की कहाँ गुंजाईश थी
बस तुम ही तुम रहना वहाँ
बस इतनी सी तुमसे गुजारिश थी
नहीं मालुम कब से
थे ताल्लुक तुमसे
मौजुदगी थी दिल में
तुम्हारे आने से पहले भी

अधूरा है कुछ जो
महसूस होता है रूह तक
बेचैन दिल,नम आँखें
धड़कन के साथ बस तेरा नाम
तू मिल जा या खो जा कहीं
पर तड़पा मत मुझे इस हद तक
ना जाने एक ही चाह रही
तुमने समझा ही नहीं
हम चाहते ही क्या थे तुमसे
“तुम्हारे सिवा”

यकीं दिला दिया था महफिल में
कि हम खुश हैं
मगर तेरी याद के एक आँसू ने
सारा भेद खोल दिया
मेरे अपने मेरे अब भी
जैसे सदा तुम
पर ना जाने क्यों
अजनबी हो तुम
क्या खता हुई हमसे
कि खफा हो तुम
कभी दूर नहीं हुए
आज क्यों जुदा तुम

जानते हो नहीं जी सकती तुम बिन
फिर किस खता की सज़ा देते तुम
कहते रहे अश्रु ना बहाना कभी
आनंद हो
तो कैसे इन अखियों में
अपनी परछाईं छोड़
आंसू दे गए तुम
खतावार ही सही
दगाबाज़ तो नहीं
फिर क्यों किए वादे भूल गए तुम

जाते तो एक बार कह तो जाते
सब बात तुम्हारे ख्यालात झूठे थे
क्यों सब अधूरा ही छोड़ गए तुम
मेरी प्यास को ना प्यासा कहते
तो शुष्क कंठ ही सही
जी तो लेते हम
अधूरे फटे ख्वाब अपने
तन्हा ही सही
सी तो लेते हम

यूँ आकर जाने में कहो
क्या महोब्बत की खता हुई
ना कभी आए होते तो
खुद में ही तुम्हें महसूस कर
आँखों से हृदय तक
अद्वैत को पा जाती
अब होकर जुदा क्यों
मुझे ही दो कर गए तुम

हसरतों के पुल से
जब उम्मीदें टकराती हैं
कश्ती तो टूटती ही है
मगर माँझी की जान भी
हर दफ़ा निकल जाती है
जाने क्यों तुम ना समझे
तुम्हारी पल भर की दूरी
हमें रूस्वा कर जाती है

आँखे थक गयीं
उम्मीदों के आसमाँ को देख
वो तारा ही नहीं है शायद
जो टूटे और में तुझे मांग लूं
तू है मेरा मैं तेरी रूह तक
फिर क्यों जाने
खुद को खुद से
मांगने की नौबत आ गई

पल पल करके
बेहिसाब उतर जाते हो
तुम रूह में मेरी
अब जाना
क्या खोया था मैंने
तुझे पाने से पहले
पा लिया तो जाना
तुम ही हो
जाने के बाद
खो दिया ज़माना

आओ कि अब लौट चलें
अपनी यादों की सरगर्मियाँ
बुला रहीं हैं
तुम्हें मेरे माँझी
कि अब ना सहन होतीं
जुदाई के भवंडरों की
आतृ हृदय में धमनियाँ
दिल करता है कि लिपट जाऊँ
रूह बन कर तेरे जिस्म से
कि जब तू मुझ से जुदा हो
तो मेरी जान निकल जाए
एक बार बस लौट आओ
कि अब के जब जाओ
तो संग जां भी ले जाओ
मेरी नहीं अपनी ही ले जाओ

बारिश की बौछार पड़े तन पर
मन मेरा लरज लरज जाए
साजन काहे निर्मोही बन बैठै
सावन ये अगन लगाए
हार फूल श्रृंगार सब पड़ गए झूठे
आईना देख मुझ कमसिन को ललचाये
मंडराऐं भंवरे मुझ कलि को भरमाएं
मन मसोस मसोस कसक मन पड़ जाए
नथनी हाले डोले मंद मंद मुस्कराए
बैरी लगे जैसै मज़ाक वो उड़ाये
झूले पड़े बागों में साँप दिल पर लोट जाए
बैरी पिया काहे तूझे प्यार भी ना आए
काहे ओ सांवरा तू आ आ के परत जाए
काहे रे तू जिया जलाये
काहे हिए में अगन लगाए
बैरी सावन पर कारे बदरा
रह रह कर तेरी याद दिलाए
तड़प तड़प कर यूँ ही क्या मर जाऊंगी
क्यों ना एक बार आ कर
तू मेरा मुझमें समा कर
देह से रूह को अलग कर
तू संगिनी को संग ले जाए

"इश्क का किस्सा यूँ सरेआम न होगा
नज़र की ओट में आँखों से कत्लेआम न होगा"

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