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अमिता दीदी , कैसे मिलोगे तुम मोहन ...

कैसे मिलोगे तुम मोहन है दिल मेरा अभिमान भरा
कभी भूले से नहीं याद किया कभी मुँह से ना निकला नाम तेरा

कभी याद में तेरी प्यारे मैंने दो अश्क़ ना बहाए कभी
कभी दो लफ्ज़ शुक्राने के मेरे लबों पर ना आए कभी
ये दिल नही हुआ कभी घर तेरा बस ये खाली ही मकान रहा
कैसे मिलोगे तुम मोहन है दिल मेरा अभिमान भरा
कभी भूले से नहीं याद किया कभी मुँह से ना निकला नाम तेरा

माना की मुझरिम हूँ मोहन अपने से जुदा मुझे करना नहीं
तेरे चरणों में मिल जाए थोड़ी जगह मुझे जन्नत में भी रहना नहीं
कभी तुम भी मोहन लिख लो अपने दासों में नाम मेरा
कैसे मिलोगे तुम मोहन है दिल मेरा अभिमान भरा
कभी भूले से नहीं याद किया कभी मुँह से ना निकला नाम तेरा

है मुझको यक़ीन तेरी रहमत का तुमने है सच्चा इश्क़ किया
नहीं मेरी औकात कुछ दे पाऊँ सारा जीवन ही माँगा किया
अब तू ही बता मेरा कौन यहां दर छोड़ तेरा अब जाऊँ कहाँ
कैसे मिलोगे तुम मोहन है दिल मेरा अभिमान भरा
कभी भूले से नहीं याद किया कभी मुँह से ना निकला नाम तेरा

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