कृपा जो राधाजू की चहिये।
तो राधावर की सेवा में,
तन मन सदा उमहियै ।।
माधव की सुख-मूल राधिका,
तिनके अनुगत रहियै ।
तिन के सुख-संपादन को पथ,
सूधौ अविरत गहियै ।।
राधा पद-सरोज-सेवा में,
चित निज नित अरुझहयै ।
या विधि श्याम-सुखद राधा,
सेवा सौ श्याम रिझईयै ।।
रीझत श्याम, राधिका रानी,
की अनुकंपा पइयै ।
निभृत निकुंज जुगल सेवा कौ,
सरस सुअवसर लहियै।।
।।जय जय श्री राधे
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