ऐसौ दुःख दीजै हिय माहीं ।
बिनु पद कंज छटा दृग देखे , कोऊ सुहावै नाहीं ।
नाम रटै दृग ढारै आँसू , छिन-छिन अति अकुलाहीं ।
काहू सौं मिलिबौ न सुहावै , बातन सौं घबराहीं ।
बस्ती छोड़ि एकान्त बैठिबौ , जग सब शून्य दिखाहीं ।
भोरी ऐसे दुःख बिनु प्यारी , जीवन जन्म वृथा हीं ।
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