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केश संवरन लीला , आँचल सखी जु

कुंज मे
श्यामसुन्दर कंघी कर रहे राधे कू।
केश नीचे भूमि तक बिखरे हुए।
जाने कब से लगे हुए।
बहुत धीरे धीरे करते
एक हाथ उपर रखे,कंघी धीरे से नीचे लाते।
फिर श्यामाजु का मुख देखते
पुनः कंघी करते
पुनः मुख देखते।
कितना समय लगा दिये वो।
यू तो साँझ हो जायेगी न।
मानते ही नही
किसी की न सुन रहे
मै ही करूगा।
मुझे आती है।
हाँ
बौराय गये।
एक कंघी कर
झुककर मुख देखने लगते।
यू तो कर लई या ने कंघी।
ललिताजु
वो स्वयं करना चाह रही
उनको लग रहा
कही दोनो श्रमित न हो।
इनको तो सुध नही।
पर राधे भी तो नही मानती।
ये सब देख कैसे मुस्कुरा रही।
उनकी खिलती मुस्कान
ललिता जु को रोक रही।
सब यू ही बैठी है।
ललिता जु  उपाय सोच रही।
संकेत किया एक सखी कू।
सब समझ गयी।
शरबत बनाने को कही
ललिताजु।
ये तो गयी।
देखू तो।
कितनी सखिया जुट गयी।
लो बन भी गया।
पहुची ललिता जु पास।
बहाना मिल गया
राधे
देखो न कितनी उष्णता है
पहले तुम दोनो शरबत पी लो।
चलो श्यामसुन्दर
तुम भी।
लो राधे को तो तुम स्वयं ही पिला दो।
देखो तो सखिजु
ये प्यारी की सेवा लोभी
फस गये ललिता जु के जाल मे।
कंघी भूल
चले शश्यामसुन्दर।
मौका देख
ललिताजु ने एक सखी से कह दई।
कंघी करन कू।
स्वयं दोनो पर ध्यान रख रही
कही कंघी होने से पहले इधर ध्यान न हो।
लो।
बस हो गयी।
तुम भी तो पीयो श्यामसुनदेखो।
मैने राधे कू पिलायो
तो राधे भी मोये पिलावेगी न।
आज तो
लो राधे ने गिलास उठा लगा दिया मुख से।
पर ये तो पी ही न रहे।
झूठ मे मुह लगाकर बैठे।
नजरे उपर
किशोरी मुख पर।
चलो
वेणी भी बन गयी
ललिता जु
श्यामसुन्दर को छेडते हुए
यू बनती है वेणी
कुछ समझे।
अब नाटक न करो
शरबत पी लो।
हम सब जानती।
इन श्यामसुन्दर का मुख देखो।
हाय।
कैसे मासूम लग रहे
सेवा छीन जाने से।
राधे जु
इनके गालो पर हाथ रख,
ओह श्यामसुन्दर
तुम कल कर लेना।
प्रसन्न भये घनश्याम।

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