पीताम्बर की एक एक सिलवट रस की गहन धारा है जो रसार्णव के ऊपरी तल पर सूर्य रश्मियों की भांति किलोल कर रही है ॥ यह सुमधुर पीताम्बर आह ...कितना मधुर है यह जितना निरखो उतना ही डूबता ज...
परम प्राण सार सर्वस्व मोहन का दिव्य रसमय श्रृंगार आहा .....वही रसराज रससिंधु के गहन रस आवर्त ....॥तिरछी झुकी सी ग्रीवा और तिरछी चितवन से रस की सुधा और तृषा दोनो को युगपत प्यारी के ...
श्री राधा सरस झांकी सखियाँ .....प्रिया प्रियतम के संयुक्त प्रेम भाव की परस्पर सुख लालसा की साकार प्रतिमाएँ ॥ प्रिया लाल के सुख के अनन्त प्यास को प्राणों में संजोये नित नवीन न...
प्रिया लाल को मिलन है सर्व रसन को सार बरसत चहुँ ओर यही बनकर मधु रस धार युगल प्यारे कुसुमित कुंज में नेत्रों से नेत्र उलझाये बैठै हैं रसमगे रसपगे चार नयन रस में डूबे न जाने क्...
रस सिंधु के रस आवर्त जो डूबे बस डूबत जाहीं दो रसभरे रसीले नयन नित नूतन रस तरंगों से छलकते ॥ कभी भोले शिशु की सी निश्छलता तो कभी रस केलि का आमंत्रण देती शरारत भरि चितवन कभी रस ...
!! राधा !! अहा ! 'र'से रस की सम्पूर्ण झन्कार केवल इस एक नाम की सरगम में जहाँ रस का उद्गम तो होता है पर उद्भव कभी नहीं।प्रियतम श्यामसुंदर राजाधिराज समस्त चराचर के एकमात्र स्वामी द...
श्री राधा रस भरी चितवन रस भरी अलकन रस भरी मुस्कन रस भरी पलकन रस बरसाते नयन रसीले रस छलकाते अधर रसीले रसमयी कोर मरोर सैनन की रसपगी मधुर गिरा बैनन की रस को पाग सजी भाल पर रस को र...
श्री राधा प्रेम आहा .....कैसी दिव्य अनुभूति होती है यह प्रेम ॥ सदा हृदय में प्राणों में आत्मा में रस का सृजन करने वाली मधुर सी शीतल सी गुदगुदी करने वाली अनुपम अनुभूति है प्रेम ॥ ...
निभृत रस शैय्या पर आलिंगित युगल रस चातक आहा .......॥झर रहा है रस, रस अणु बन प्रिया के रोम रोम से ॥ प्रति अंग अंग से निर्झरित होते रस बिंदुओं की मनभावनी लडियाँ ॥ प्रत्येक बिंदु को स...