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कान्हा जु करे सृंगार , अमिता दीदी लीला रस

*कान्हा जू करें सिंगार*

आज कान्हा बहुत प्रसन्न हैँ ,अपनी प्यारी जू के लिए प्रेम से बहुत सारे उपहार लाए हैँ। वस्त्र ,आभूषण पुनः पुनः निहारते हैं ,आज हृदय में यही भाव है कि अपनी प्यारी जू का अपने हाथों से श्रृंगार करेंगें। सब वस्त्र आभूषण लेकर वृक्ष के नीचे अपनी प्रियतमा की प्रतीक्षा करने लगते हैँ।

    आज उन्हें अपनी बांसुरी भूल गयी है वो तो अपनी प्रियतमा के श्रृंगार हेतु लालायित हो रहे हैं। एक एक आभूषण को अपने करकमल में उठाते हैँ और सोचते हैं कि मैं यही आभूषण ही बन जाऊँ। कर्णफूल उठा कर कहते हैँ तुम बहुत सौभाग्यशाली हो, श्यामा के कर्ण में झूलते हुए कोमल कपोलों को छूते रहोगे। मैं ही प्यारी जू का कर्ण फूल बन जाऊँ ,इनके कोमल कपोल ही चूमता रहूँ। आहा ! कितने सौभाग्यशाली हो तुम। तभी कंठहार उठा लेते। हाय ! मैं कंठहार ही बन जाऊँ ,सदैव श्यामा संग आलिंगित ही रहूँ। श्यामा जू संग ही अठखेलियां करता रहूँ। फिर नुपुर उठा लेते हैं हाथों में और खनकाने लगते हैँ। अरे अरे तुम सब मेरा नाम क्यों ले रहे हो,उन्हें सब घुंघरुओं में छन छन नहीं कृष्ण कृष्ण सुन रहा है। अच्छा तुम भी कृष्ण होना चाहते हो,प्यारी जू के चरणों में रहना चाहते हो। बलिहारी बलिहारी मैं भी तुम संग प्यारी जू के चरणों में ही रह जाऊँ। तुम सब कितने सौभाग्यशाली हो। आज तुम मेरी प्रियतमा का श्रृंगार बनोगे।

           ये चुनर कितनी सौभाग्यशाली है श्यामा के अंग संग लिपटी रहेगी। हाय श्यामा जू मुझे चुनर ही बना लो न। सदा तुम्हारे संग ही रहूँ। इस प्रकार भाव में डूबने लगते हैँ। कुछ समय पश्चात वो स्वयम् को ही प्रिया जू मान लेते हैँ। एक सखी वृक्ष  की ओट से कब से उन्हें निहार रही है । श्यामसुन्दर अब स्वयम् का ही श्रृंगार करने लगते। सखी ने बहुत बार श्री प्रिया जू की ये स्थिति देखी है जब वो स्वयम् को कान्हा समझ लेती हैँ। आज श्यामसुन्दर राधा होने को ही उन्मादित हैँ। धीरे से सभी आभूषण धारण करने लगते हैँ और चुनर ओढ़ लेते हैँ। सखी उन्हें इस प्रकार देख अपनी हँसी बहुत मुश्किल से रोकती है।

     श्री प्रिया जू उस वृक्ष के पास आ जाती हैँ तो सखी उन्हें कान्हा की सब दशा दिखाती हैँ। प्रिया जू भी उन्हें वृक्ष की ओट से निहारने लगती हैँ। कुछ समय बाद श्री प्रिया जू उसी वृक्ष को कान्हा समझ लेती हैँ। धीरे धीरे सभी वृक्षों के पास जाकर उन्हें ही कान्हा कान्हा कहकर छूने लगती हैँ। सखी की दशा बहुत विचित्र हो रही है। सोच रही है इन दोनों का यदि मिल्न नहीं हुआ तो दोनों यूँ ही व्याकुल रहेंगें । श्री प्रिया जू यदि अधिक अधीर हो गयीं और कान्हा जू नहीं मिले तो उनकी स्थिति सम्भाले नहीं सम्भलेगी। वो सखी कान्हा के पास जाती है और उन्हें कहती है श्यामसुन्दर राधा जू आपके लिए व्याकुल हो रही है। इधर श्यामसुन्दर समझ रहे हैँ वही राधा हैँ और कान्हा कान्हा कहते हुए उठ जाते हैँ। सखी उनका हाथ पकड़ प्यारी जू के पास ले जाती हैँ। अभी श्यामा श्याम दोनों ही कान्हा कान्हा बोलने लगते हैँ। कान्हा के पैरों में नुपुर के घुंघरू की छन छन दोनों की व्याकुलता बढ़ा रही है। दोनों ही कृष्ण कृष्ण कहकर रोने लगते हैँ। श्यामा जू श्यामसुन्दर बनी राधा से कहती हैं सखी कान्हा नहीं आये और श्यामसुन्दर कहते हैँ हाँ सखी कितना समय हो गया उन्हें अब तक आ जाना चाहिए था।

   सखी सहसा बोल उठती है श्यामा ! दोनों ही श्यामा श्याम उसकी और देखने लगते हैँ। आज तो श्यामाश्याम दोनों ही श्यामा बने हुए हैँ अभी सखी दोनों को श्यामा बने देख आनन्द विभोर होने लगती है। सखी कहती है श्यामा तुम धीर धरो अभी कान्हा आ ही रहे होंगें । तभी सखी श्यामसुन्दर की बंसी उठाती है और बजाना आरम्भ करती है श्यामा जू बंसी को सुन अधीर हो जाती है और रोते हुए मूर्छित हो जाती है। श्यामसुन्दर उसे उठाने को जैसे ही स्पर्श करते हैँ तो राधा राधा कहकर पुकारने लगते हैँ। धीरे धीरे उनके स्पर्श से प्यारी जू की चेतना लौटने लगती है। श्यामा जू ऑंखें खोलती है और श्यामसुन्दर का श्रृंगार देख अति प्रसन्न होती है। आज श्याम सुंदर की प्रेम में ये दशा हो गयी की श्यामा के प्रेम को अनुभूत करते हुए स्वयम् ही श्यामा हो गए और श्यामा जू को अचेतन देख स्वयम् ही श्याम हो गए। श्यामा जू श्याम के स्पर्श से ही प्राण पाती हैँ। सखी युगल केइस अद्भुत प्रेम की जय जयकार करती हुई बलिहारी जाती है।

  जय जय श्री राधे

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