"श्याम सौं उरझि जावक बन रचि री श्यामा सखिन श्यामल कर धर दीनि जय जय"
आज गोपाल रास रस खेलत,
पुलिन कल्पतरु तीर री सजनी।
शरद विमल नभ चंद्र विराजत,
रोचक त्रिविध समीर री सजनी।
चम्पक बकुल मालती मुकलित
मत्तमुदित पिक कीर री सजनी
देसी सुधंग राग रंग नीको
ब्रज युवतिन की भीर री सजनी
मघवा मुदित निसान बजावत
ब्रत छाँडयो मुनि धीर री सजनी
हितहरिवंश मगन मन स्यामा
हरत मदन मन पीर री सजनी।
रात्रि से पूर्व ही श्यामसुंदर जु ने सब सखियों के हाथों व चरणों में मेहंदी लगा दी है और अब नीलमणि ने जो भाव आवरण सखियों पर डाला था उसे हटा देते हैं।जैसे ही यह आवरण हटता है चकित सखियाँ अपने हाथों पर लगी अद्भुत जावक को देख बलिहारी जातीं हैं और सखी बने श्यामसुंदर की जावक सरंचना व तीव्रता की बहुत तारीफ करतीं हैं।अद्भुत कला है सखी की कह उस पर बलिहारी जातीं हैं।
श्यामसुंदर जु अब अपना कार्य निपटा कर जाने के लिए कहते हैं।पर ये क्या? इस मेहंदी में तो अभी भी सरसरी सी मची है।श्यामा जु के करकमलों व चरणों पर रच चुकी है और अष्टसखियों के भावों में भी रंगी ने सब मञ्जरी सहचरि किंकरी के चरणों को छू कर श्यामाश्याम जु का प्रसाद पा लिया है पर अभी भी ये अटपटी सी क्यों है?
अब क्या चाहती है ये?आज तो प्रिया जु की छुअन से इसके भीतर अद्भुत अह्लाद ही भर गया है।
सहसा श्यामा जु श्यामसुंदर सखी को पुकार लगातीं हैं
अरी सखी!तूने तो सच में आज कमाल कर दिया है।जादू है री तेरे हाथों में।
सुन!आज पूर्ण चंद्र की रात्रि है और बिना पारितोषिक लिए तू नहीं जा सकती।आ बैठ!आज तेरे हाथों में भी मेहंदी लगा दूँ।आ तुझे भी पिया मिलन की इस रैन पर निकुंज सखी सरीखा श्रृंगार धरा दूँ। बलिहार!
बस इतना ही कहना था कि श्यामसुंदर जु तो वहीं मंत्रमुग्ध से हुए श्यामा जु के चरणों में ही बैठ गए और घूंघट की आढ़ से ही किशोरी जु की करूणा वहाँ सखी प्रेम पर भावभावित हो अश्रु प्रवाह करने लगते हैं।सच अद्भुत है सब!
श्यामा जु हाथ जावक का पात्र व तुलिका दे देते हैं और स्वयं अपना हाथ आगे बढ़ा देते हैं।
श्यामा जु जैसे ही सखी बने श्यामसुंदर जु का कर कर में लेतीं हैं दोनों तुरंत सिहर उठते हैं।अब भला दो देह एक प्राण श्यामा श्यामसुंदर जु कैसे कुछ अभिन्न सोच भी सकते हैं।ये सब आवरण तो सखियों को दिखाने के लिए ही हैं ना।
श्यामा जु श्यामसुंदर जु के दोनों करकमलों के ठीक मध्य में गोलाकार चक्र बनातीं हैं और साथ ही"राधामाधव"नाम गोलाकार ही लिख देतीं हैं ऐसे कि नाम जहाँ से शुरू होता है वहीं पे समाप्त भी।अद्भुत!
उंगलियों के पौरों पर जावक लगा कर किशोरी जु श्यामसुंदर जु से रात्रि जागरण व नृत्य गायन के लिए आमंत्रित करतीं श्रृंगार करतीं सुंदर वस्त्र धारण करके आने को कहतीं हैं।
सखी श्यामा जु के चरण छू कर अश्रु बहाती वहाँ से चली जाती है।उनकी करूणा दयालुता के पद गाती सखी वहाँ से मेहंदी का पात्र व तुलिका ले कर चली जाती है।
जय जय श्यामाश्याम ।।
मेहंदी भाव-9 समाप्त
क्रमशः
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