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मेहँदी भाव , संगिनी 23

श्यामा प्यारी कुंज बिहारी जय जय श्री हरिदास दलारी

मेहंदी अंतिम भाव

दुधिया हाथ में चाँदनी रात में
सजी मेहंदी श्यामा जु अनुराग में
बह चली महक बन प्रिय जु के प्यार में
बन उड़ी मधुबन उड़ी प्रेमगीत की खुशबू लिए
नित् नव भाव संजीवनी मेहंदी दुल्हन का श्रृंगार लिए
तन मन दोनों हुए हरे हरि राधे का मधुर संवाद हिए

लुभाता मदमाता आकर्षण जगाता
रूह में बसता सांसों संग महकता
सदा सुहागिन राधे जु के प्रेम की हर परम्परा निभाता
श्यामा चरण छू लिए रहा ना अब कुछ मेहंदी जैसा
नेह घुला साजन का प्राणप्रियतम मनभाता
मेहंदी अब शोखी हुई अंगड़ाई लेती सुबह में
हथेली देख सांवरे का मन फिर फिर मचल जाता
देख देख रंग मेहंदी का मन के चोर की हकीकत ब्यां कर जाता

गाढ़ा हुआ रंग अति हया की लाली सुर्ख कपोलों पर इतराने लगी
श्यामा जु की कोमल छवि मेहंदी में नज़र आने लगी
प्रेम मेहंदी का मोहताज नहीं पर
प्रेम के रंगों में प्रियतम ने घोली
तब कर से जा आत्मा में बसी
सुर्ख रंग हुई लाली प्रेम की भरी
जन्म जन्मांतरों ना उतरेगी

हा श्यामा हा श्याम
मेहंदी सेवा दे दो प्यारी
सदा चरणों में रख लो स्वामिनी
कर श्याम जु के आऊंगी
सखियों को महकाऊंगी
रिझा रिझा कर युगल को
महक प्रेम की बिखराऊंगी
प्रेम सुरगीत गाती पवन से मिल जाऊंगी
हरे से लाल होकर श्यामा प्रेम ही प्रेम गाऊंगी
हे श्याम हा श्यामा
मेहंदी को अपने प्रेमरंग में रंग दो
महक चहक चरणों को सजाऊंगी
ऐ री सखी मेहंदी में लिख श्यामा नाम प्यारी
श्याम श्याम हो इतराऊंगी
नित्य नवनवेली दुल्हिन की अंगिनी संगिनी हो जाऊंगी
महक महक सखी रंगत तेरी भावभीनी निखराऊंगी
चरण पड़ूं ओ प्यारी सुहाग तेरे में सुहागिन हो जाऊंगी

जय जय श्यामाश्याम।।

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