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मेहँदी भाव , संगिनी 5

श्याम वर्ण मनोहारी गौर वर्ण श्यामा अति प्यारी दोऊ मिलहि हरित वर्ण प्रेमरस बरसहि

लाल लाल लाल हुई
गौरवर्ण लाल ललाम हुई
सुन वंशी की धुन लली
स्वयं लाड़ली लाल हुई

सम्पूर्ण हाथ व भुजा पर"कृष्ण कृष्ण"लिखा देख प्रिया जु कुछ घड़ी पूर्व हुई अपनी विरह दशा विस्मृत कर जातीं हैं और प्रसन्न होकर खुद में ही कृष्ण भरे हुए महसूस करने लगतीं हैं।उन्हें अपने प्राणप्रियतम से तनिक भर भी दूरी का एहसास नहीं है।

"कृष्ण कृष्ण"रंग में रंगी प्रिया जु कृष्ण ही होने लगतीं हैं।उनमें महाभाव का संचरण होता है और सिमटी कम्पित देह में वो श्यामसुंदर को ही पातीं हैं।सखियाँ उनमें हो रहे इस परिवर्तन पर बलिहारी जातीं हैं और तीव्र भाव से"कृष्ण कृष्ण" गा उठती हैं।अब उनमें ऐसा प्रेम उन्माद भरा है कि उन्हें हर कहीं श्यामसुंदर ही नज़र आ रहे हैं।

अचानक उनका ध्यान उन अपनी उल्लसित सखियों पर और उनके गायन पर जाता है।सब सखियों को "कृष्ण कृष्ण" गाते देख वे अचंबित होतीं हैं और स्वयं राधा होकर राधा का ही नामुच्चारण कर नृत्य गायन में शामिल हो जातीं हैं।उनके मुख से "राधे राधे" सुन विस्मित सखियाँ एक बार के लिए शांत हो जातीं हैं।

प्रिया जु उन्हें "राधे राधे"पुकारने को कहतीं हैं क्योंकि श्यामसुंदर तो वे खुद हैं और सबमें भी श्यामसुंदर ही भरे दिख रहे हैं उन्हें तो श्यामसुंदर को तो "राधे राधे" नाम ही सुहाता है ना तो सब सखियाँ "राधे राधे" गा उठतीं हैं।सखियों के नेत्रों से अनवरत अश्रुधार बह रही है और वे "राधे राधे" गाती हुईं प्रियालाल जु के अद्भुत प्रेम की बलिहारी जाती हैं।भिन्न होकर भी अभिन्न हैं युगल।कभी भी इनका बिछड़ना तो हुआ ही नहीं।

सब को "राधे राधे" कहते सुन श्यामा जु कुछ ही क्षणों में फिर से अधीर हो उठतीं हैं और उनको सखियों में राधा ही राधा दिखने लगती हैं और वे वहीं चुपचाप सी गुमसुम बैठ रोने लगतीं हैं।सखियों को भी अब सुद्ध नहीं है।वे सब राधा नाम उच्चारती हुईं मंत्रमुग्ध सी हो रही हैं।

श्यामा जु समझ ही नहीं पा रहीं कि आखिर उन्हें क्या होता जा रहा है।कभी सब कृष्ण हैं तो कभी स्वयं कृष्ण हैं।कभी सब राधे हैं तो स्वयं वो श्यामसुंदर हैं।इसी भाव में डूबती उतरती श्यामा जु अधीर हुईं बैठीं हैं कि तभी वहाँ वंशीधारी श्यामसुंदर जु आ जाते हैं

जिनकी रूपछटा को निहार श्यामा जु उन्हें देखती ही रह जातीं हैं और सखियों को अभी भी कोई ज्ञान ही नहीं कि श्यामा श्यामसुंदर जु वहाँ उपस्थित हैं।वे अभी भी"राधे राधे"नाम में डूबी ताल मृदंग बजा रही हैं और श्यामसुंदर भी अपनी प्रिया का नाम सुन मदहोशी से अधीर श्यामा जु को अपनी बाहों में भर लेते हैं।

जय जय श्यामाश्याम।।
मेहंदी भाव-5 समाप्त
क्रमशः

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