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मेहँदी भाव संगिनी 1

सुघड़ सलोनि सुंदर सुगंधित सहेलि
श्यामा जु लगै दुल्हिन नित नव नवेलि
सुकोमल पद कमल सुकोमलतम हस्त रत्न चढ़ि
महक अनोखी ब्यार चौखी श्वासन माहि घुलि
लै लै सुगंध कमलिनि कौ मधुबन भंवर संगिनि उड़ी
खैंचत खैंचत श्याम सलोने अलबेले पिय छाई रहै मदहोशि
भूलि भूलि सुधि बुद्ध भूलि वारि तन मन भूलि
नैत्र निहारें पलकन बुहारैं असुवन बहावैं
धोयै धोयै कै पीवै रसराज पलोटत चरणन किशोरि
भावभंगिनि महावरि सजी भावभीनि जावक रंग रंगीली
तन मन ढुरकि श्यामा पद तैं अनहोश श्याम कर नै कीनि
चाव चढ़ै महक बिखरै रंग खिलै श्याम चूमैं हाथन तैं
मुख धरै दोउन कर कमल माहिं श्यामा प्यारी चकौरि कीनि
अद्भुत सुंदर छवि दैख दैख सखियन बलिहारनि
चाहत चावैं वारि जावैं हाए पियापियतम पदकमल कर जाए लगि
हाए च्यों ना सखी हमहि महावरि भाविनि अर्पण हौंहि

सुघड़ सलोनि भामिनि राधे किशोरी जय जय"

मधुबन के पुष्प पंखुड़ियाँ बेल लता पत्तियाँ सब ही तो श्री किशोरी जु की सेविका दासियाँ ही हैं।प्यारे श्यामसुंदर जु ने पूरा मधुबन ही श्यामा जु के सुख सुविधा व प्रेम विलास के लिए उपजाया है।यहाँ की एक एक लता वल्लरी प्रियाप्रियतम जु की रसकेलि के लिए समर्पित है।लहलहाती हुई ये उनके अद्भुत प्रेम विहार के गीत गुनगुनाती नाचती रहती हैं और कभी विरह में तनों से भिन्न होकर भी वृंदावन रज में मिलकर श्यामाश्याम जु की पद कमल छुअन पाकर अपने जीवन को सफल बनाती हैं।हर भाव से इनका ब्रज जीवन युगल का कृपा प्रसाद ही तो है।

धन्य री माई।।
मोकू या देह ते छुड़ाए लै
ऐ री मोकू रज तन माहिं मिलाए लै
री डाल पात बनूं या पुष्प बल्लरी
मोकू हरियाली ब्रज कू बनाए लै
रंग रंगीलो चौखो रस हिना कू
मोकू दासी जान चरणन ते चढ़ाई लै

सुघड़ सलोनि राधिके भोरी
मोकू कर कमल ते सजाई लै
ऐ री श्याम पिय आवेंगे
श्यामा जु ते धरावैंगे
सगरी सखियों आभूसण बाहरि
मोकू युगल सघन कुंज लै जावैंगे
महारास रस रसीलो रंगीलो मोकू
श्यामाश्याम पद कमल कर धर मोकू
रूप अनूप छटा निराली दिखावेंगे
री मेहंदी होएगी तुलसी सरीखी आजिहि
सखी मोकू महीन महीन पीस री
श्री श्यामा जु कै चरणन की रंगीनी कर दै री

जय जय श्यामाश्याम।।

आज एक मञ्जरी सखी मधुबन में मेहंदी के बाग में मेहंदी की पत्तियाँ बीनने आई है।सारा मधुबन जहाँ श्यामाश्यामसुंदर जु के प्रेम के रंग में सदा रंगा है वहाँ ये मेहंदी की लहलहाती पत्तियाँ भी सखी की राह तकती रहती हैं कि कब इनके भाग जागें और कब प्रिय सखी इनको तोड़ कर श्यामा जु के चरणों में अर्पित कर इनका जीवन सफल करें।

एक एक पत्ती कुंज की पवन संग लहराती और सखी के चरणों को छू महकती है और मनुहार करती है कि आज सखी मुझ पत्ती को ले जा री।
इसके ऊपर पड़ी ओस की बूँदें ऐसी हैं जैसे रो रो अश्रु बहाती ये सखी से मनुहार चीत्कार कर रही हों।सखी भी इनकी भाव दशा पर बलिहारी जाती है और कह उठती है:

धन्य हो तुम महकती मेहंदी की पत्तियो जो श्यामा जु के चरणों में अपने को अर्पित कर जीवन समर्पित कर सदा सर्वदा अपनी महकती रंगीली रससेवा प्रदान करतीं तुम श्यामाश्याम जु की निभृत निकुंज केलि का सहज दरसन पाकर अपना जीना और मरना दोनों सरलता से सफल कर जाती हो।धन्य जो सखी मैं भी पुष्प या पत्ती बन अपना जीवन सफल बना जाती।
सखी सर्वत्र बाग में ऐसी ही भाव तरंगों में उतरती डूबती विचरण करती जा रही है और अंत में कुछ कोमल वर्षों सुगंधित पत्तियाँ बीन कर अपने कुंज में ले जाती है।

जावक तैयार करने के लिए ज्यों ही वह सखी पत्तियों को पीसना आरम्भ करती है तो उसके अश्रु इन पत्तियों पर गिरते रहते हैं कि इसके लिए जल की आवश्यकता ही नहीं।
पत्ती अपनी प्रिय सखी की भावभीनी अश्रुपूरित नेत्रों के रस को चखती भावविभोर हो रही है और कह उठती है:
अरी सखी तूने आज मुझे चुन लिया सो बड़ी कृपा भई तेरी मुझ पर।सखी तेरी कृपादृष्टि पाय के धन्य हो गई मैं।

ऐ री सखी सुन
आज देख मुझे पीसेगी ना तो ज़रा दबाए के पीस दिओ।अरी सखी महीन पीसियो।
इतना पीसना कि मेरे जन्म जन्मांतर के कलुष कुटिल कल्मष सभी तेरे अश्रुओं से धुलकर सखी प्रिया जु के चरणों को छूने लायक बन जाएं।

अरी सखी तेरे पवित्र हाथों के स्पर्श और तेरे अश्रुओं की धोवन ही मेरे पाप धोए के मुझे सेवा में प्रिया जु के चरणों में लगाए सके के समर्थ बनाएंगे सखी अन्यथा मुझमें ऐसा कोई गुण ना है सखी।
वारि जाऊँ अपने भाग ते जो आज तूने मुझ अदना गुणहीना को बीन लियो।खूब महीन पीसना सखी और गहरा चढ़ा देना फिर श्यामा जु के सुकोमल चरणों में।

मेहंदी भाव-1 समाप्त
क्रमशः

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