नित नव रसकेलि नित नव श्याम दुल्हनि नित नव किशोरी लली जय जय
हरि हरि रंग भरि महक चहक सुभग कलि
मेहंदी भाव भरियोड़ी री सखि
श्यामा जु के पद कमल चढ़ि
पात पात ते खिलि राग रंग सौं भरि
पुकारै पुकारै ह्वै खरि ऐ री सखि मोहै लै जाय री
श्यामा जु कै चरणन ते न्यौच्छावर प्राण करि
मौरा जीवन वृंदा जु सरीखा सुफल बनावो री
तुव बिनु ऐ री सखी कोए ना जानै या सेवा भलि
लै जाय कै सखि श्यामा जु कै अर्पण करि
मनभावनि श्यामा जु के दाहिने चरण पर सखी ने अद्भुत सुंदर जावक संरचना कर ली है।अब श्यामा जु की इच्छा जान सखी उनके बाएँ चरण पर तुलिका से मेहंदी लगाना आरम्भ करती है।भावों में डूबी सखी सोच रही है कि जिन भावों को वह श्यामा जु के चरणों पर उतार रही है वे उसके हैं ही नहीं।श्यामा जु को जो भी कोई भाव छूते हैं वे केवल श्याम जु के ही होते हैं।
मधुबन के लता डालियों फूल पत्तियों में क्या यहाँ तक कि रज के कण कण में ही श्यामसुंदर जु ही भाव बन समाए हैं ताकि वे अपनी प्रिया को हर रूप रंग में सुख प्रदान कर सकें।मेरे हाथों लग रही इस मेहंदी और मेहंदी के भाव रूपेण पत्तियों में भी श्याम ही श्याम भरे हैं।श्यामा जु को केवल श्यामसुंदर ही तो छू सकते और उनके ही भाव हैं जो हम सब में जी उठते श्यामा जु के चरणों में अर्पित होने के लिए ।
मेहंदी जो पहले ही भाव में श्यामा जु के चरणों पर बह रही ये सब सुन और मंत्रमुग्ध सी हो जाती है।अपनी प्रिय सखी जु के सुंदर भावों में हरी भरी मेहंदी सुरख लाल हो उठी है और भीगी भीगी सी ना जाने कब और कैसे सखी जु से एक हो जाती है।उनसे अपने भाव मिलाती जा रही है और बह कर श्यामा जु के चरणों के स्पर्श से हो रहे सपंदन से सखी जु को भी सिहरा देती है।
अचानक सखी के हाथों तुलिका छूट जाती है और उन्हीं के पैरों को छू कुछ छींट मेहंदी रच बस जाती है।श्यामा जु को इसका आभास नहीं हो पाता क्योंकि वो भी श्यामसुंदर जु की यादों में खोईं हैं।
वहीं दूसरी ओर सखी जु भी मेहंदी के भाव को तो नहीं जान पातीं पर अश्रु बहाती फिर तुलिका उठा श्यामा जु से क्षमा याचना करती मेहंदी लगाने लगती है।दाहिने चरण के जैसे ही बाईं ओर भी पायल नूपुर की छवियाँ बनाती है।
मेहंदी के भाव में वह सखी जु के चरण स्पर्श से उस संग एक हो चुकी है और अपना आस्तित्व भूली सखी ही हो चुकी है।
जय जय श्यामाश्याम।
मेहंदी भाव-3 समाप्त
क्रमशः
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