सुंदर सुंदर श्यामसुंदर लाड़ली श्यामा प्यारी श्याम रसरास महारास स्वामिनी जय जय
रंगभरी रसभरी चौखी मेहंदी
महकभरी अति मनोहारी मेहंदी
श्यामसुंदर मनमोहिनी मेहंदी
श्यामा जु हाथन रची मेहंदी
नित नित दुल्हा दुल्हनि सेज सजी मेहंदी
रस रास बिलासनि महारास अभिलासनि
रसिकेश्वर रसिकश्वेर मनभामिनी बड़भागिनी मेहंदी
श्यामा जु के पद कमलों पर अनुपम मेहंदी लगा कर सखी अब भाव में डूबी श्यामा जु को चैताती है और उन्हें उनके चरणों पर लगी मेहंदी दिखाती है।श्यामा जु मेहंदी संरचना देख प्रसन्न होतीं हैं और अब सखी को उनके दाहिने हाथ पर मेहंदी लगाने को कहतीं हैं।
श्यामा जु सखी की तरफ अपना हाथ बढ़ाते हुए अपने हाथ पर अपने प्रियतम का नाम लिखने के लिए कहतीं हैं।समक्ष खड़ी सब सखियाँ हंस देती हैं और मेहंदी लगाने वाली सखी भी मुस्करा देती है।
आज मेहंदी और मेहंदी की रचनाकार के भाव एक ही हैं और उनके भावों में छुपे हैं स्वयं श्यामसुंदर जु के भाव।
हाए!!ना जाने अब क्या हो।
एक तो किशोरी जु के सुकोमल हाथों का स्पर्श और उस पर भी प्रियतम का नाम!
बलिहारी! जैसे ही सखी तुलिका उठाती है और उसे मेहंदी में डुबा श्यामा जु के कर से छुवाती है
हाए!तीनों ही में एक अद्भुत कम्पन हो उठता है।सखी की पूरी देह ही सिहर उठती है।
वह"कृष्ण कृष्ण"पुकार करती श्यामा जु के हाथ पर"कृष्ण कृष्ण" ही लिख देती है और उसकी आँखों से अश्रु बह जाते हैं।
"कृष्ण कृष्ण" लिखते ही श्यामा जु के हाथ से सपंदन होना आरंभ होता है और उनकी पूरी देह में जैसे कृष्ण ही समा गए हों और वो दोनों हाथ ऊपर उठा कर ज़ोर से "कृष्ण कृष्ण" पुकार उठतीं हैं और पुकारते पुकारते मुर्छित हो जातीं हैं।
अब सखियाँ तो घबरा जाती हैं और श्यामा जु को कैसे होश में लाया जाए ये सोच अति व्याकुल हो उठतीं हैं।
श्यामसुंदर जु के वियोग में श्यामा जु बेहोश हुईं हैं तो अब श्यामसुंदर को ही आना होगा।पर वेतो अभी आए ही नहीं।तो अब क्या हो!सब सखियाँ अधीर बिकल हो उठी हैं।
मेहंदी के भाव उस सखी के हृदय से बह निकलते हैं और वह मूर्छित श्यामा जु के कर पर "कृष्ण कृष्ण" ही लिखने लगती है और पास खड़ी सब सखियाँ भी "कृष्ण कृष्ण" ही पुकारने लगती हैं।जैसे ही "कृष्ण कृष्ण" नामुच्चारण की ध्वनि अश्रुप्रवाह के साथ निकुंज में बहती हुई गहराने लगती है तो श्यामा जु भी "कृष्ण कृष्ण" पुकारती हुई होश में आतीं हैं।
मेहंदी में "कृष्ण कृष्ण" नाम की शीतलता वियोग के ताप को कुछ शांत तो कर रही है पर साथ ही साथ श्यामा जु के हृदय के उद्गार श्यामसुंदर तक पहुँच जाने से उनके मनचित्त में प्रियतम आगमन की अग्नि को तीव्र कर रही है।अब श्यामा जु श्यामसुंदर को यूँ आतृ हो पुकारें और वे ना आएं ये सम्भव नहीं।सखियों के मुख से तीव्र नामुच्चारण सुन श्यामसुंदर जु वंशी बजा ही देते हैं।
श्यामसुंदर जु अभी समक्ष तो नहीं पर उनके आने की वंशी की प्रतिध्वनि से ही सखियों के"कृष्ण कृष्ण" पुकारने में एक उन्माद छा जाता है और श्यामा जु भी अश्रु बहातीं हुईं उस वंशी ध्वनि के साथ नाद मिला कर गान करने लगतीं हैं और सब सखियाँ झांझ मंजीरे वाद्य बजाती नृत्य करने लगतीं हैं।
मेहंदी लगाने वाली सखी उन्माद से भरी श्यामा जु के पूरे हाथ और भुजा पर"कृष्ण कृष्ण" लिख देती है।
जय जय श्यामाश्याम।।
मेहंदी भाव-4 समाप्त
क्रमशः
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