श्वेत सारी श्वेत पीताम्बर आजि सजि जोरि अनुपम शीतल श्वेत चंद्र चौकोरि सी निच्छल चित्तवन जय जय
"चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बर तल में।
पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,
मानों झूम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥"
श्यामा जु श्यामसुंदर जु को लौट कर आने को कहतीं हैं।शरत्पूर्णिमा का पूर्ण श्वेत चंद्र काले घनेरे आसमान में अद्भुत अनोखी आभा लिए सखी भाव से विभोर हो आ गया है।सितारों से घिरा यह चंद्र भले ही आज आसमान में अनोखा सज रहा हो पर धरा का चाँद तो आज निकुंज में ही खिला है जो श्यामा जु से रससार आभा ले सगरे ब्रह्मांड को सितारे रूपी सखियों संग प्रकाशित कर रहा है।अनोखी रूप माधुरी छाई है आज निकुंज वन में।
श्यामसुंदर श्यामा जु ने नील और पीत वस्त्र त्याग आज अद्भुत सुंदर श्वेत रंग के लहंगा व अंगरखा पहन रखा है और सब सखियों ने हल्के पीले रंग के वस्त्र पहन रखे हैं।
मध्य में श्यामा श्यामसुंदर जु और गोलाकार चक्र में सब सखियाँ युगल को घेरे खड़ी हैं।
श्यामसुंदर वंशी पर मधुर शरद पूर्णिमा रात्रि मिलन की धुन छेड़ देते हैं और श्यामा जु कुछ क्षणों तक तो इस गहरी रसपूर्ण वंशी ध्वनि को सुनतीं हैं और फिर श्यामसुंदर जु के अंक लगीं धीरे धीरे गुनगुनाती हुईं ताल से ताल मिलाती गाने लगतीं हैं।
सखियाँ तो वंशी ध्वनि व श्यामाजु के गान में इतना डूब चुकीं हैं कि उन्हें अपने वहाँ होने का भी एहसास नहीं हो रहा।सब सखियाँ श्यामा जु की ही तो भावस्वरूपा हैं तो आज सब श्यामा ही हो आईं हैं।
शरद पूर्णिमा की रात श्यामसुंदर जु पूर्णतः श्यामा जु में लिप्त हो महारास रचाते हैं जिसमें वे एक एक सखी में प्रिया जु को ही देखने लगते हैं और उनकी प्रियतम मिलन की चाह को पूर्ण करते हुए श्यामा जु में ही सम्माहित पाते हैं।कभी श्यामा जु में ही उन्हें सब समाई हुई लगतीं हैं।प्रेम पिपासु श्यामसुंदर आज अनवरत रसपान कर रहे हैं।किसी के नेत्रों में डूबे हैं तो किसी की भाव तरंगों के संग बह रहे हैं।हर सखी को आनंद प्रदान करते श्यामसुंदर जु आज सत् चित्त आनंदघन मूर्तिमान हुए निकुंज में सब भावमूर्तियों को सुख पहुँचा रहे हैं।
श्यामा जु के गायन के साथ साथ नृत्य आरम्भ होता है जिसमें श्यामसुंदर जु जिनके आस पास ही श्यामा जु घेरा बनाए नाच गा रहीं हैं वहीं सब सखियाँ नृत्य रस में ही इतना डूब चुकी हैं कि उन्हें हर एक को अपने समक्ष श्यामसुंदर जु और श्यामा जु हृदय में ही नज़र आ रहीं हैं।वे सब आँखें मुंदे श्यामा श्यामसुंदर जु के मधुर मिलन का ही एहसास सपंदन महसूस कर रही हैं।तमाम रात्रि रास चलता है और किसी को भी कोई थकान का आभास नहीं।आज सब प्रियतम की प्रेम संगिनियाँ हो गई हैं और प्रियाप्रियतम जु को रिझाने के लिए तत्पर।
हर एक सखी को यही लग रहा है कि जैसे श्यामसुंदर व श्यामा जु उसी के सन्मुख खड़े हैं।प्रत्येक सखी युगल को पा कर निहाल हुई जाती है।युगों से इंतजार कर रही अनगिनत सखियों की मन की मुराद आज पूर्ण हो रही है।सब अपने अपने भाव से ही श्यामाश्याम जु को मानसिक भाव पुष्प अर्पित कर उनकी मन ही मन पूजा अर्चना करती है।
अर्धरात्रि हो चुकी है।नृत्य गायन सब अपनी चरम सीमा पर है।गीत संगीत ध्वनियाँ निकुंज के कोने कोने से स्वतः ही उठ रही हैं।सब सखियाँ यंत्रचालित सी स्वयं को श्यामसुंदर जु संग कर में कर लिए नाच रही हैं ।दो दो सखी के बीच एक एक श्यामसुंदर कर में कर लिए गहन रसभाव में डूबे अनवरत रास रचा रहे हैं।मध्य में श्यामा श्यामसुंदर जु अत्यधिक उत्साहित हैं और कभी एकरूप तो कभी दो नज़र आते हैं।बलिहार!
और इन सब के बीच कर से कर के जुड़े होने के बीच ये पगली मेहंदी!
अहा!सुरख लाल रंग प्रेम वाला जैसे चढ़ा हो।नूपुर पायल के प्रेमालाप से भी एक हुई ये प्रियाप्रियतम व सखियों के करों में भी यह भावरूपिनी समाई है।अथाह प्रेम रंग में रंगी ये अनोखी संगिनी ही हुई है सखियों व प्रियाश्याम जु की।प्रेम में ही गहराती ये महारास में भी अपने रंग व महक को लिए सबको छूकर समा ही गई है।बड़भागिनी पूर्णतः रच बस कर एक हो गई है सबकी प्रेम लहरियों में तरंगायित बहती ये मेहंदी पूर्णता को प्राप्त हुई।
जय जय श्यामाश्याम।।
मेहंदी भाव-10 समाप्त
क्रमशः
Comments
Post a Comment