🌿🌹निकुञ्ज-लीला🌹🌿
राजति निकुञ्ज महल ठकुरानी।
कुसुम सेज पर पौढी श्यामा, राग सुनत मृदुवानी।
ललिता चरण पलोटन लागी, लाल दृष्टि ललचानी।
पाँइ परत सजनी के मोहन, हित सों हा हा खानी।
भईं कृपाल लाल पर ललिता दै आज्ञा मुसिकानी।
आओ मोहन चरण पलोटो, जैसे कुँवरि न जानी।
आज्ञा दई सखी कों प्यारी, मुख ऊपर पट तानी।
गावन लगे रसिक मनमोहन, तब जागी महारानी।
उठ बैठी 'व्यास' की स्वामिनि, वृन्दावन की रानी।
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सभी रसिको को जय श्री राधे..... नीचे चित्र मे लाल जी-लाली जी वाली छवि को निहारिये... यह दर्शन सेवा कुञ्ज में एक रसिक को प्राप्त हुए और वह यह भाव व्यक्त करते हैं कि-
हम जब इसे देखते है तो एकदम से हमै शयन की लीला नजर आयेगी.....
"चापत चरण करत नित सेवा,
बिन दर्शन नहीं होत कलेवा"
या .....
"धन धन राधिका के चरण"
एक दिन लीला मै लाडली जू शयन कर रही है अभी अभी महारानी करवट लै धीरे धीरे श्यामसुंदर के विचारों मै मग्न अपनी आखै बन्द किये मन्द मन्द मुसकुरा रही है..आज ललिता जू के मन मै श्यामसुंदर की प्रैरणा से चरण सेवा विचार आया, दासीगण ओर मन्जरीयो को विश्राम दै ललिता जू स्वयं किशोरी जू के चरण दबा रही है।लीला कौतुक मै श्याम सुंदर वहाँ पधारै..श्यामसुंदर को वहाँ देख ललिता जू एक दम से परैशान हो श्यामसुंदर की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखती हैं। श्यामसुंदर हाथ जोड विनय की मुद्रा मै इशारे से ललिता जू को मौन रहने की प्रार्थना करते है तो ललिता जू इशारे मै ही पूछती है..
क्या चाहते हो..?
श्यामसुंदर ने इशारे मै ही उत्तर दिया..
थोडी देर चरण सेवा।
ललिता जू कोतुक मै थोडी आखे तरेर के इशारे मै कहती है..
नहीं मिलेगी....
श्यामसुंदर बिलकुल गिडगिडाने वाली स्थिति मै आ जाते है...
लीला मै ज्यादा सताती नहीं ललिता जू और इशारे से श्यामसुंदर को बुलाती है और इस तरह चरण सेवा सौपती है कि प्रिया जू को पता ना चलै कि कब ललिता जू हटी ओर श्यामसुंदर आये.....पर प्रिया जू तो प्राण वल्लभ प्रियतम के स्पर्श को हाथ लगते ही पहचान जाती है.....!
अब लीला शुरू होती है...प्रैम की, आनन्द की, प्रैम मै प्रैमी के सुख के लिये अपने पर कितने भी अपराध आये उसे भी प्रैमी के सुख के लिये स्वीकार करने की....
अहो श्यामसुंदर मेरे चरण दबा रहै है, क्या करूँ. .चरण दबाने से जो सुख श्यामसुंदर को मिल रहा है उसे मै कैसे मना कर सकती हूँ पर श्यामसुंदर मेरे चरण दबायै ये मेरे लिये बिलकुल असहनीय है...किशोरी जू इस समय बहुत असमंजस मै...प्रिया जू के नेत्रो से अविरल धारा बह निकलती है...श्यामसुंदर को सुख मिल रहा है चरण सेवा से तो रोक भी नहीं सकती ओर श्यामसुंदर चरण दबा रहै है ये मन मै पीडा भी है उनकी सेवा मुझे करनी चाहिये है , देव वो मेरी सेवा कर रहै है।इसकी पीडा भी मन मै है....ये है प्रैम ओर प्रैम मै केवल प्रैमास्पद के सुख के लिये हर पीडा हर अपराध सहने का भाव...किशोरी भाव भी यहीं से शुरू होता है....प्रियतम के सुख के लिये भलै कोटि जन्म भंयकर नरक मै क्यौ ना बिताने पडे...हम तौ केवल एक प्राण वल्लभ का सुख चाहते है....!
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...
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