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मेहँदी भाव , संगिनी 8

"श्याम श्यामा श्यामल तन श्याम श्याम भई सखीगण प्रेम तमाल चढ़ि श्यामल श्यामल मधुबन जय जय"

मेहंदी आजिहि श्याम जु कर
निरखत निरखत बलिहारि सखीगण
श्यामा रंग रस रंग भई श्यामल
महकि महकि फिरि कुंजन कुंजन

आज श्याम जु के कर लग मेहंदी महक गई है।जैसे उसमें कस्तूरी मिला दी गई हो और हिरणी सी नशीली बहके भाव ले कुंजों में विचरण कर रही हो श्यामाश्याम जु संग।हाँ!प्रेम संगिनी बन डोल रही है सर्वत्र।
श्यामा जु के करकमलों पर चढ़ कर इसने श्यामा जु का श्रृंगार नहीं किया है जैसे आज ये स्वयं ही श्रृंगार रस में डूबी हुई है और स्वयं श्रृंगारित हुई है।
पहले सखी हाथ पिसी और अब दोऊन चंद्र चकोर बीच जा और गहरा पिस रही है।इन चंद्र चकोर के हाथ आते ही इसे आज खुद का ही रंग डुबो रहा है।
श्यामा जु के हाथों पर श्यामसुंदर जु ने गहरी व घनी मेहंदी रचना कर दी है पर अभी ना तो श्यामसुंदर जु का मन भरा है और ना ही ये सुघड़ महकती मेहंदी ही अपनी मदहोश कर देने वाली महक को रोक पा रही है।आज तो जैसे इसका मन नहीं है श्यामसुंदर जु के हाथों से उतरने का।वश चले तो युगल प्रेम प्यासी भावभीनी मेहंदी श्याम जु को भी छू कर उनमें समा जाए।पर कैसे?स्वयं से तो ये सम्भव ना होगा ना।अब कोई इस मेहंदी के भावजगत में उतरे और इसकी भावतरंगों के कम्पन को महसूस करे तब तो सब सम्भव होगा ना और ये कार्य केवल एक ही हैं जो कर सकते हैं।जो निकुंज के डाल डाल और पात पात में समाए हैं भाव बन कर अपनी प्रिया जु की सेवा के लिए।
हाँ।सत्य पहचाना
वो और कोई कैसे हो सकता है श्यामसुंदर जु के अलावा।
तो लो महकती मेहंदी के बहके भावों में बहने को तैयार श्यामसुंदर जैसे दोनों ने सब पहले से तय कर रखा हो और जैसे श्यामा जु की सेवा के लिए दोनों उनके ही प्रेम रूपी मदिरा में डुबकी लगा चुके हों।
हा प्रियतम!!
कुछ क्षणों के लिए श्यामसुंदर जु निकुंज में से अंर्तध्यान हो गए हैं।साथ ही मेहंदी का पात्र और तुलिका भी।अहा!
जाने क्या चल रहा है आज शरद्पूर्णिमा की पूर्ण चंद्र रात्रि पर जाने क्या कर जाए ये श्यामवर्ण मदमाता श्यामल भंवर!
कुछ ही पलों में।हाए!
बलिहार!!
जैसे श्याम घण ने घणगोर श्यामल संध्या में गहरी सुनहरी चूनर औढ़ ली हो।आज की महारास की वेला में सब सखियों के हृदय की प्रेम लहरियाँ श्यामसुंदर जु को पहले ही भिगो व छू चुकी हैं।आज की रात श्यामसुंदर सब सखियों को उनकी सेवाओं के प्रति सुख देने की ठान चुके हैं।
सखियाँ सजने सँवरने व श्यामा जु को सुंदर अति मनोहर श्रृंगार धरा कर कुँज निकुँजों में प्रेम रस बिखराती विहर रही हैं।श्यामा जु भी वहीं उन सबके साथ पूर्ण चंद्रमा की रात्रि का इंतजार कर रही हैं।
निशा और चाँद तो उनके चाहने मात्र से ही सेवा में उपस्थित हो जाएँ पर इनको तो नीलमणि चंद्रशिरोमणि श्यामसुंदर जु का इंतजार करना ही भा गया है।
इतने में सब प्यारी सखियाँ क्या देखती हैं कि दक्षिण द्वार से एक अलबेली मतवाली सखी प्रवेश कर गई है।अद्भुत श्रृंगार किए हुए है।पूछने पर बताती है कि मैं तो श्यामाजु के कर मेहंदी लगाने आई हूँ पर उनके हाथ तो अद्भुत जावक रच चुकी है तो वो सब सखियों से ही मेहंदी लगवाने के लिए कह देती है।अब श्यामसुंदर सखी भेस में आएं पर उनका बात मनुहार करने का भाव तो वही है ना तो सखियाँ मान जाती हैं।आज पूरी रात्रि श्यामाश्याम जु भी नृत्य गायन में शामिल रहेंगे तो सेवा कार्य तो सब पहले ही निपट चुका है ना।तो अब सखियों को मेहंदी लगवाने के लिए श्यामसुंदर जु ने तैयार कर लिया है।अभी इस संध्या समय जावक रचेगी तो आगे के कार्य स्थगित तो ना होंगे?
तुरंत श्यामसुंदर जु फिर कहते हैं
अरी!जावक लगाने में बेहद माहिर हूँ।तुम्हें ज्ञात भी ना होगा कि कब शुरू किया और कब पूर्ण हो गया।सखियाँ हंसी ठिठोली करतीं सन्मुख बैठ ही जातीं हैं कि चलो आज देख ही लेते हैं तुम्हारी कलाकारी।
लो जी!अब ये तो श्यामसुंदर हैं ना!
प्रिया जु के प्रेमरस में नहाए भीगे और डूबे हुए।इनके लिए प्रिया जु के संग होते हुए क्या नामुमकिन है।
हो गए शुरू।जैसे ही एक सखी का कर कर में लेते हैं वो सखी तो अपना आस पास सब बिसरा ही बैठती है।बस उसे याद रहता है तो केवल युगलचरणों की सेवा व प्रेम का भाव और उसी भावतरंगों को परखते व बहते श्यामसुंदर उनके प्यारे हाथों व पैरों में सुंदर मेहंदी भाव अंकित कर देते हैं।
आश्चर्य ये कि श्यामसुंदर केवल एक ही सखी को जावक नहीं लगा रहे हैं।यहाँ तो जितनी सखियाँ हैं उतने ही श्यामसुंदर पनिहारिणी का वेश धर सब सखियों को एक साथ ही मेहंदी लगा रहे हैं।बलिहार!बलिहार प्यारे जु!!
जय जय श्यामाश्याम।।
मेहंदी भाव-8 समाप्त
क्रमशः

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