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मेहँदी भाव , संगिनी 12

सुकोमल सुकुमारी राधा प्यारी जीवनधन प्राण अति भोरी गुणखानि जय जय

"जय मृगनयनी राधिके रंग रंगीली बाम
गोरि कंचन बेलि जो लपटि श्याम तमाल
जयति जयति भामिनि रंगीली श्री राधिके
वल्लभा श्री बिहारी जु के गुण अगाधिकै
लपटि रहि लाल जु के ललित अंग सोहनी
तरू तमाल कनक बेलि छबीलि विमोहनि"

सब भोली सखियाँ नेत्र मूँदे प्रियतम मिलन में मग्न हैं।गोलाकार घेरे बनाए श्यामसुंदर जु को गलबहियाँ डाले नृत्य कर रही हैं।सखियों के भाव में किसी को तो सब ओर श्यामसुंदर ही नज़र आ रहे हैं तो किसी को श्यामसुंदर जु में श्यामा जु।
श्यामा जु की सखियाँ जो श्यामसुंदर जु की सेवा केवल श्यामा जु के प्रियतम के नाते करतीं हैं वे श्यामा जु को ही आज करूणा से भरी हुईं सखियों साथ नृत्य करतीं दिख रहीं हैं।उन्हें केवल श्यामा जु ही हर ओर नज़र आ रहीं हैं या श्यामा जु में भरे श्यामसुंदर।जय जय
तात्पर्य केवल यही है कि युगल सदैव अभिन्न ही हैं।उनमें कभी वियोग होता ही नहीं।वे केवल सखियों के भाव के मुताबिक कभी भिन्न तो कभी गहन मिलन में प्रतीत होते हैं।सखियों व प्रियाप्रियतम जु में तत्सुख सुखित्वम के भाव हैं जिसके नाते श्यामा श्यामसुंदर जु सखियों के हृदय में समाए विभिन्न लीलाएँ रचते रहते हैं।कभी विरहित कभी सेवारत कभी मिलन तो कभी सखीत्व भाव से वे ही किञ्करी मञ्जरी व सहचरी का रूप धारण किए रहते हैं और आज शरत्पूर्णिमा की रात्रि सुमंगल मिलन की रात है तो सब सखियाँ मिलन की भावना में डूबी प्रियाप्रियतम जु को सम्पूर्ण मिलन का ही एहसास करा रही हैं।
अब ये कैसे सम्भव है तो सुनो।
प्रिया जु की अष्टसखियाँ ही उनके सगरे हाव भाव ही हैं।वे प्रिया जु के अंगों में व आभूषणों में समाई रहती हैं।
मिलन के समय जब प्रियालाल जु गहन आलिंगन में होते हैं तो उनके नेत्र अंगों को ना देख पाने से अति व्याकुल हो उठते हैं।इसका अर्थ यह हुआ कि उन्हें पूर्ण मिलन का आभास तब तक ना होगा जब तक उनके समस्त अंग एकरस एकरूप ना होंगे और ये तभी सम्भव है जब उनकी सब सखियाँ प्रियाप्रियतम जु के मिलन अनुकूल प्रभाव वाली होंगी।
प्रिया जु की अंतरंग सखियाँ उनके नख बेसर नेत्र वक्ष् कर्ण अधर में समाई रहती हैं।प्रिया जु जब श्यामसुंदर जु को आलिंगन देने से ना कहती हैं और मान करतीं हैं तो उनकी नख बेसर में विराजित सखी मान धारण से उभर आती है और ऐसे ही जब प्रिया जु गहन आलिंगन में रहतीं हैं तो उनके वक्ष् में व्याकुल भाव उत्पन्न होते हैं।अर्थ ये कि जब तक श्यामा जु के सभी भाव अनुकूल नहीं हो जाते तब तक प्रियतम की रस पिपासा पूर्ण नहीं होती।सहचरी सखियाँ तभी सदा उनके अनुकूल उनकी सेवा भाव लिए तत्पर रहतीं हैं और उन्हें पूर्णरससार होने में विभिन्न प्रतिक्रियाओं से श्यामा जु में भावपूर्ण विराजमान होतीं हैं।
तभी तो श्यामसुंदर राधा जु के साथ साथ उनकी परम सखियों पर भी सदा लुण्ठित रहते हैं क्योंकि वही उनके प्रिया जु से सम्मिलन का तारताम्य बिठाती हैं।
यूँ तो निकुंज में हर रात्रि ही शरत्पूर्णिमा की रात्रि ही है पर कार्तिक मास की शरत्पूर्णिमा पर सब सखियों में गहन मिलन के भाव उभर आते हैं तो प्रियाप्रियतम जु में भी किसी तरह का कोई भी प्रतिकूल भाव उत्पन्न नहीं होता जिससे वे अतृप्त रहें।आज पूर्ण मिलन की रात है।
इस तरह से सब सखियाँ अनुकूल हुईं आज मण्डलाकार में प्रियाप्रियतम जु को घेरे हैं।मध्य में प्रियाप्रियतम जु समस्त सखियों को एकरस देख अति प्रफुल्लित हैं और उनके मिलन अनुकूल परिस्थितियों में स्थिर होने के अति गहन व अधिक भाव उभर ने लगे हैं।कुछ ही क्षणों में अर्धरात्रि उपरन्त सखियों को रस में डूब चुकी देख श्यामाश्याम जु वहाँ अपनी छाया प्रतिछाया छोड़ अन्यत्र कहीं गहन निकुंज में जा चुके हैं जिसका आभास मात्र भी इन सखियों को नहीं है और अगर हो भी तो क्या
ये भी तो उनकी सेवा वहाँ मिलन पलों के लिए ही सेवारत तत्पर हैं।ये चूर हैं प्रियाप्रियतम नामक रसमद में।तो कहाँ हैं युगल?
जय जय श्यामाश्याम।।

मेहंदी भाव-12 समाप्त
क्रमशः

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