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मेहँदी भाव , संगिनी 20

अनोखे प्यार की जय विलक्ष्ण राग की जय मधुर अनुराग की जय हमारे भाग की जय श्यामाश्याम जु की जय जय

"आज सखी श्यामसुन्दर बंसिया बजावे।
मोर मुकुट सिर चड़ाय पग में नूपुर सुहाय।
बंसी मुखमें लगाय मधुर मधुर गावे।।
जमुनाको रुकत वार पक्षीगण मौन धार।
धेनु मुख धास डार धुनिमें मन लावे।।
ब्रह्मा सुरराज शेष शंकर गौरी गणेश,
धार धार मनुज वेष बृन्दावन आवे।।
बंसी धुन सुन अपार भूले मुनि मन बिचार।
ब्रह्मानन्द गोपनार तनमन बिसरावे।।"

श्यामसुंदर जु श्यामा जु से कुछ और कहें इससे पहले मईया उन्हें जगाने आ जाती हैं और श्यामसुंदर जु भी झट से अपने मेहंदी रंगे "राधा" नाम लिखित हाथों को छुपा कर आँखें मूंद मुंह फेर लेट जाते हैं।
वहीं दूसरी ओर श्यामा जु आनंदोन्माद से भर चुकी हैं।उनके प्रियतम ने उनमें श्रृंगार रस की लालसा जगा दी है।वे कुछ ही पलों में भावविभोर हुईं सखियों से कह उठतीं हैं
अरे क्या देखती हो!चलो शीघ्रातिशीघ्र मुझे स्नान करादो और वस्त्राभूषण पहना कर श्रृंगार धराओ।
सखियाँ प्रिया जु को यूँ प्रसन्न देख दुगने उत्साह से भर उन्हें तैल उबटन लगाने लगती हैं।
तैल उबटन में श्यामा जु को श्यामसुंदर ही उन्हें कोमल स्पर्श देते महसूस हो रहे हैं।जैसे जैसे सखियाँ उनके कोमल अंगों पर तैल लगाती हैं श्यामा जु के रोम रोम में कम्पन होने लगता है।
इसके पश्चात सखियाँ उन्हें स्नान करातीं हैं।श्यामा जु को श्यामल यमुना जु के जल में श्यामसुंदर ही नज़र आते हैं और उनकी देह से जैसे ही यमुना जल स्पर्श करता है वैसे ही श्यामा जु सिहर उठतीं हैं।सखियों के स्पर्श में भी श्यामसुंदर ही महसूस हो रहे हैं।उनके काले लम्बे घने केश जैसे स्वयं श्यामसुंदर ही हों।
स्नान करा कर सखियाँ उन्हें वहाँ से एक सघन निकुंज में ले जाती हैं।वहाँ उन्हें सुंदर वस्त्र धारण कराती हैं तब भी श्यामा जु क्षण क्षण सपंदित होती रहतीं हैं।उनको अपनी साड़ी कंचुकी के हर बंधन में श्यामसुंदर ही बंधे प्रतीत होते हैं और वे और अधिक उन्माद से भरीं सखियों को शीघ्र करने को कहतीं हैं।
एक एक आभूषण में उन्हें अपने प्रियतम श्यामसुंदर की ही अनुभूति हो रही है।पायल नूपुर चूड़ियों व कमर बंध के घुंघरूओं की ध्वनि में स्वामिनी जु"कृष्ण कृष्ण"ही की नाम ध्वनि सुन भावविभोर हो उठतीं हैं और स्वयं भी"कृष्ण कृष्ण"पुकार रहीं हैं।गलमाल वक्ष् पर धराए मणिजड़ित हार के एक एक मणि में श्यामसुंदर ही की अत्यंत सुंदर मनमोहक छवियाँ भरी हैं।बाजुबंध मस्तक के मणिजड़ित माँग टिक्के से श्यामसुंदर ही रौशनी बन उनके मुख को चमका रहे हैं।नासिका की नथ में भी श्यामसुंदर ही हीरे सी लिश्कोर मारते समक्ष बैठी सखियों की आँखों को चौंधा रहे हैं।नखों अंगुठियों में भी श्यामसुंदर श्यामसुंदर ही भरे हैं।श्यामा जु इन सब आभूषणों को देख देख अत्यधिक आनंद से भर चुकी हैं।
सखियाँ श्यामा जु के इस सपंदन को देख दंग हैं और कुछ तो श्यामा जु की भाव दशा को बिल्कुल ही समझ नहीं पातीं हैं।आज श्यामा जु सखियों द्वारा किए जाने वाली एक एक गतिविधियों को देखती जा रहीं हैं नहीं तो  पधराए जाने वाले वस्त्राभूषण श्रृंगार में इतना तन्मय नहीं देखा कभी भी सखियों ने।
सखी जब उनके केशों को गूँथने लगती है तो श्यामा जु बार बार उन्हें बिखरा देतीं हैं और सखी को कहतीं हैं आज मत बाँधो इन्हें उन्मुक्त रहने दो।उनको अपनी काजल बिंदिया गुलाली  अधरों की लाली में भी श्यामसुंदर जु ही अनुभूत हो रहे हैं।मेहंदी के रंगों में लिखा "कृष्ण" नाम उन्हें बार बार उसे छूने के लिए आकर्षित करता है और वे सिहर उठतीं हैं।
श्यामा जु के रोम रोम में तो पहले ही श्यामसुंदर ही भरे हैं तो अब आज श्यामसुंदर जु अंगों से लिपटे वस्त्रों आभूषणों में भी प्रतीत हो रहे हैं।उनकी आँखों के काजल में श्यामसुंदर ही नज़र आते हैं तो श्यामा जु अधीर हो उठतीं हैं।सखियाँ श्यामा जु के इस बर्ताव को देख दंग हैं कि अभी कुछ ही पल पहले श्यामा जु श्रृंगार के प्रति उन्मादित थीं और अब व्याकुल होती जा रहीं हैं।
पहले एक सखी ने साहस कर पूछा था कि श्यामा जु इतनी प्रसन्न कैसे हैं तब उनकी अंतरंग सखियाँ उसे अपने कर पर लगी जावक को स्पर्श करने को कह हंस देतीं हैं और अब वही सखी श्यामा जु को देख अधीर हुई जाती है।
जय जय श्यामाश्याम।।

मेहंदी भाव-20 समाप्त
क्रमशः

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