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आँचल जु के पद या रसिक अवतरण

क्या सच में कलयुग है , अगर हाँ तो आज के समय ऐसा समर्पण और इतना दिव्य प्रेम कैसे -- क्या मीरा , सूरदास बार-बार लौटते है , छोटी सी आँचल की यह निर्मल भावना । कौन मानेगा यह इस नवम्बर की ही कोई रचना , लगेगा किन्हीं गहन युगल रसिक की कृपा वर्षा । सच सिद्ध अवतरण होते है ।
युगल प्रेम की जयजय ।

कलश भरे लीन्है लूट रसधर।
दुई थाल सजै अधै श्रीफल,टटोलतौ कर श्याम करिए।
पकरि खेचत थाल औंधे,दूसर उपरि ज्यौ धरिए।
चंचल भुजंग चढि,ज्यौ विटप चमेली चढिए।
सर धरि गगरी,त्यौ छाछ रसिलौ भरिए।
फोडत लूटत दधि,जल जलधर लये लूटिए।
छेडत जो जोरि होवत,जोरा जोरि बरजोरि करिए।
दासी प्यारी बिनती चरणा,ऐसी बरजोरी हमहु संग करिए।

निरखत नैन छकत नाही।
जुगल जोरी अति अनुपा,निरख परख न नैन अघाते।
कबहु नैनन चरण अटकतै,कबहु मुख चंद्र चकोर ह्यै जाते।
मुरली टेर मधुर कर्ण पीबतै,बीरी रस अधर लाल ललचातै।
मृदु मुस्कनि कबहु नैनन टोना,कबहु चित्त चंचल चितवनि फसाते।
हाय कबहु प्यारी अधम भाग हौ,कबहु टेर नैनन बहि आते।

रैन दिना काय बहतौ न नैना।
काय पाथर मन मैला टोला,काय न द्रव सम हुई बहि जाय।
ज्यौ धौली चदरी कारा दागा,त्यौ मन बिषयन काय भटकाय।
नैनन जल कहौ कहा भजि जायौ,काय नैनन सूख्यौ ह्यै जाय।
अधीर होय नाम टैरिहै न काय,काय नाहि चरणा शीश झुकाय।
गठरी बोझ जग झंझट ढोवै,काय नाय प्यारी प्यारौ मनाय।

करे गठजोड युगल को सखिया।
ललिता विशाखा सखी ओरि ओरि,बांधत कर दई गठ जोरि।
चुनर नील पटा पीत बंधाया,बैठायी पुष्पन हिंडौला भोरी।
बसन भूषण दुई ऐकेहु सजाहै,ऐकहु पहराई बनमाला डोरी।
हल्दी कुमकुंम चरण सजाए,भाल सैंदुर कौ बैंदी रचौ री।
नीको नीको झुलावै सखियन,हसत कस पकरत श्याम किशोरी।
झौटा ऐक दुई कदसी देवू,पूछै प्यारी देखू कदै रूप ठगौरी।

मैरो श्यामा जू बन चाकर रहू थारी।
उठत भौर हि प्रेम सौ जगावू,मुखेै कर कमल जल सुवसित धुलावू।
माखन लौना कलेवा करावू,जल शीतल सुगंधित बीरी खिलावू।
कुनमुने जल सौ स्नान करावू,बदन मलि मलि उबटन कौ लगावू।
चोला सुंदर रंग सुरंग धरावू,भूषण भाँति भाँति नगा पहिरावू।
सुंदर आभूषण धराऊं तेरो केश सजाऊँ ।
लै पकरि चंदन बैठाय चौकी,मोतिन सजाय थाल आरती उतारू।
श्री श्यामा छवि निरख निरख अपनों तन मन बलिहारूँ ।
प्यारी कौ गिरधर आसरौ तिहारौ,थारे ही संग दिन रैन बतियावू।

राधा राधा प्राण धन राधा।
भज राधा नाम सवेरे शाम,रैन दिनन ही प्यारी नाम गा मन।
पलक ढाप ह्रदय चौकी सजाय,लगाय जा श्यामा प्यारी नाम धुन।
निरत करै जिव्हा मोहन नाम धुनि संग,राधा राधा राधा गावत झूम रे।
होवे ह्रदय शीतल सुंदर कुंजन,या ही मे बिराजिए करि सेबा रे।
बैरि बैरि गिरी चरणा मांगू बर जै हि,नाम धन राधा मोहि दीजौ रे।

मैरो गिरधर जी बन चाकर रहू थारी।
उठत भौर हि प्रेम सौ जगावू,मुखेै कर कमल जल सुवसित धुलावू।
माखन लौना कलेवा करावू,जल शीतल सुगंधित बीरी खिलावू।
कुनमुने जल सौ स्नान करावू,बदन मलि मलि उबटन कौ लगावू।
चोला सुंदर रंग सुरंग धरावू,भूषण भाँति भाँति नगा पहिरावू।
लै पकरि चंदन बैठाय चौकी,मोतिन सजाय थाल आरती उतारू।
प्यारी कौ गिरधर आसरौ तिहारौ,थारे ही संग दिन रैन बतियावू।

राधावल्लभ अनुपम जोरी।
चतुर सुजान मोहन प्यारौ,राधा रसिली भौरी।
बाँकी चितवनी श्याम सुन्दर कौ,भरी प्रेम रति रस की पौरी।
फिरत भ्रमर सौ सखिन पाछे,राधै कमल कुसुम सम गौरी।
ऐकौ लकुटी टेढो हुई जानौ,एकौ भई रेशम कौ डौरी।
प्रेम तागा बांधै प्यारी दोउन,सुनो अजहु बिनती मौरी।

चल मना मैरौ दौडि दौडि ब्रजधाम रे।
लाडली लली के गुण-गान तहा रट रे।
नवल किशोर नित स्वामी जहाँ स्वामिनी।
उहा ब्रज धुरि मे नित लोटत ललाम रे।
राधा राधा रटत सवेरे साँझ होय जँहा।
भजत लाल लली नाम निकसत प्राण रे।
कुंज लता बड्यौ ही साधु सिद्ध होय यहाँ।
इन्ही सो लिपट नैन बहवतौ खोय रे।
राखौ निज चरना बनाय निज चेरी ही।
प्यारी नित नित ही बिनती जे करे रे।

बिछोडै काय करिहै पिय म्हारै।
ज्यौ स्वाति बिनु चातक मरिहै,त्यौ तडपू बिनु पी।
मछरी पानी सूख्यौ तडप्यौ,बिनु पीय तडपै जी।
हाय! नाय आयौ प्रीतम म्हारौ,सुनत एक नाय भी।
अखियाँ दरसन प्यासी होहिहै,ज्यो रेती बूंद पडी।
बिरह अगन भी मै तो गमाई,रही सूनी अज ही।
औ साँवरियाँ नंदलाल हमारै,प्यारी दरस देवो कद सी।

पिय बिनु जीवतौ बने न मरतौ।
कैसो कैसो सुपन सजौये,पिय बिनु असुवन धोये।
लगि हिय जानिहै सोई,जाके हिय प्रीती दरदा होई।
आवत दीखे न कदही मुरारी,कर गयो मोहै जग सौ बेचारी।
सूनो हिय को अंगना सूनो,बिनु भाव रस जगहि सूनो।
लगाय हिय प्यारी शीतल करियो,पग प्रीत को हिय धरियो।

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