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मेहँदी भाव , संगिनी 7

भोरि भोरि श्यामा जु अति भोरि चित्तचोर की कर लीनि चित्त चोरी प्यारी प्यारी अति प्यारी जय जय

दामोदर मास आओ री सखी
श्यामसुंदर अति मनभायो री
देख देख श्यामा जु की सुरतिया
मन अति अकुलाया री सखी
कर कर में डार हरि
रस रस रसीली युगल जोरि
लै लई तुलिका सखिन ते
हाए री कलईया मरोरि

श्यामसुंदर जु के कर छूते ही श्यामा जु के हाथ का सपन्दन उनके हृदय में समा जाता है और तभी श्यामा जु होश सम्भालती हैं।होश में आते ही श्यामा जु जब श्यामसुंदर जु को समक्ष बैठे देखतीं हैं तो लजा कर पलकें झुका लेती हैं।श्यामसुंदर जु अब श्यामा जु की मधुर अलबेली चित्तवन पर बलिहार जाते हैं।

श्यामसुंदर जु प्रिया जु से मेहंदी लगवाने की आज्ञा चाहते हैं कि श्यामा जु हाँ कहते कहते सकुचा जातीं हैं।उनके मुख से इतना ही निकल पाता है
ये भी क्या पूछने की बात है प्यारे जु!
मधुर वाणी सुनते ही श्यामसुंदर दिल थाम लेते हैं और श्यामा जु को श्रमित ना होने के लिए कहते हैं और उनका कर अपनी गोद में रख लेते हैं।

श्यामसुंदर मेहंदी की रंगत और श्यामा जु के हाथ पर लिखे अपने ही नाम को देख विभोर होते हैं और उनके दूसरे कर पर"राधे" नाम लिखते हैं और श्यामा जु से पूछते हैं
कहो राधे क्या बनाऊं आज तुम्हारे कोमल कर पर।कोई छवि या यूँ ही तुम्हारा नाम ही लिख दूं।

ऐसा सुन श्यामा जु श्यामसुंदर से अपने सभी अंगों पर अपना नाम लिखने को कहतीं हैं।श्यामसुंदर पहले तो ये सुन हंस देते हैं और फिर प्रिया जु ठिठोली करते कहते हैं कि हे प्यारी जु ये तो एकांत में ही सम्भव होगा और इसके लिए मेहंदी और तुलिका की क्या आवश्यकता!ये सुनते ही श्यामा जु चूनर में मुँह छिपा कर हंसने लगतीं हैं और श्यामसुंदर जु भी हंस देते हैं।
तब श्यामसुंदर जु प्रिया जु के हाथ पर मेहंदी संरचना आरंभ करते हैं।

वे"राधे"नाम के ऊपर नीचे दो कमल के पुष्प बनाते हैं और दोनों ओर मोर पखा की आकृतियाँ बना उसे सजा देते हैं।श्यामा जु के हाथ के ऊपरी हिस्से में वे बांसुरी की आकृति बनाते हैं और शेष मेहंदी की रचना में वे ऐसे"राधे""राधे"लिख देते हैं जैसे सत्य में ही वंशी "राधे"नाम ही पुकार रही हो।
श्यामा जु इसे देख अत्यधिक प्रसन्न होतीं हैं और सच में ही अपने कानों में वंशी की मधुर धुन में प्रियतम द्वारा अपना नाम"राधा"पुकारे जाने को अनुभूत करतीं हैं।अद्भुत वंशी नाद।

अहा!बलिहारी!
सच! बड़भागिनी मेहंदी।क्या हुआ जो मुख से बोल नहीं सकती पर इसकी लिखावट में भी तो इसके भाव स्पष्ट ही हैं ना और तो और वो भी प्रियतम श्यामसुंदर जु के करकमलों से ना केवल लग रही बल्कि बह रही उनके स्नेह के साथ भाव तरंगों में।

जीवन सफल तो तब हुआ जब वो श्यामसुंदर जु के कर कमलों से बह कर श्यामा जु के पूजनीय पद कमलों व सुकोमल करों का श्रृंगार बनी।जाने अनजाने उन्हें छू कर उनमें समा ही गई।

जय जय श्यामाश्याम।।
मेहंदी भाव-7 समाप्त
क्रमशः

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