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युगल प्रेम , अमिता दीदी दर्शन अनुभूति

युगल प्रेम
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श्री प्रियाजू आज बिलकुल मौन हैँ। सखी उनके पास कई बार आती है और ये जानने की चेष्ठा करती है कि स्वामिनी जू के मन में क्या भाव हो रहे हैँ। श्री जू कभी अत्यंत व्याकुल जो जाती हैँ कभी अश्रु प्रवाहित करने लगती हैं और कभी मन ही मन कुछ कहती हुई प्रसन्न हो जाती हैँ। सखी बहुत चेष्ठा करती है श्री प्रिया जू को समझने की परन्तु वह अपने भावों में ही खोई हुई हैँ। सखी जैसे ही उन्हें स्पर्श करती है प्रिया जू रोने लगती हैँ। सखी कान्हा मुझे छोड़कर चले गए। मुझ करुपा से उन्हें कोई सुख नहीं हुआ। मैं उन्हें प्रेम ही नहीं दे पाई सखी उनकी कोई सेवा ही नहीं कर पाई। सखी अच्छा ही हुआ ना वो चले गए। वो जहां भी होंगें आनन्द में ही होंगें न। मैं बहुत स्वार्थी ही हूँ न सखी जो उनको अपने प्रेम से बांधना चाहती थी और उन्हें प्रेम भी नहीं दे पाई। अच्छा ही हुआ न सखी कान्हा अब बहुत सुख में होंगें ,प्रसन्न होंगें ना। मुझे उनके सुख में ही सुख है सखी।

   सखी देखती है श्री प्रिया जू कभी रुदन करने लगती तो कभी स्वयम् को सम्भाल कान्हा का सुख मान आनन्दित हो जाती है। सखी कहती है श्यामा आप कहो तो मैं ले आऊँ कान्हा को। श्यामा कहती है सखी देखो मेरा और मेरे प्रियतम का वियोग ही कहाँ हुआ है वो तो मेरे रोम रोम में समा चुके हैं सखी। मेरी प्रत्येक श्वास भी तो उन्हीं के नाम से चल रही है। वो दूर रहकर भी मेरे अत्यंत पास ही हैँ। सखी वो मेरे हृदय में ही रहते हैं। मेरी आँख उन्हें न भी देख पाये परन्तु मेरे प्रियतम मेरे हृदय से तो कभी नहीं जा सकेंगे। जब तक मेरी इस देह में प्राण हैँ मेरे प्रियतम का सदैव मेरे हृदय में ही वास रहेगा।

    इस प्रकार श्री प्रिया जू संयोग और वियोग की भाव तरंगों में डूबी रहती हैँ। उनकी ये स्थिति लम्बे समय तक बनी रहती है।

   कान्हा श्री प्रिया जू को इस स्थिति में देखते हैँ और उनके पास आ जाते हैं ।उनके करों को चूमते हैँ और पुनः पुनः उनके चरण स्पर्श करते हैँ। प्यारी जू मैं तो स्वयम् को ही आपके प्रेम के अयोग्य मानता हूँ। मेरा प्रेम तो आपके प्रेम का एक कण भी नहीं है। आपसे दूर तो कभी मैं रह ही नहीं सकता। आप ही मेरे हृदय की स्वामिनी हो। मेरे हृदय में आपके चरणों का ही वास है। मुझे आपसे दूर रहने पर हर सखी ही राधा लगने लगती है। आपका प्रेम इस प्रकार मेरे हृदय में है की मुझे हर और राधा ही राधा दिखाई देती है। आपका प्रेम देख मैं स्वयम् को अयोग्य देखता हूँ प्यारी जू। कान्हा अत्यंत उच्च स्वर में विलाप करने लगते हैँ। भोली स्वामिनी जू ये भी कहाँ सहन कर पाती हैँ कि कान्हा उनके कारण इतने दुखी हो रहे हैँ। श्री जू उनको अपने हृदय से लगा लेती हैँ।

  ऐसे अद्भुत प्रेम की जय हो

    जय जय श्री राधे

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