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मेहँदी भाव , संगिनी 11

श्यामा श्याम नवकुंज केलि करैं लपटि लपटान
अति रसभामिनि रस रसीली जोरि श्यामाश्याम जय जय

"रसिक बिहारी लाल कौ जीवन प्राण आधार
रसिक रसीली रस भरी अलबेलि सुकुमार
रसिक रसीली राधा श्री राधा रस ही सौं भरि हैं
रसिक बिहारी जु की जीवन की जड़ि हैं
अलबेलि जु में ऐसी अधिकता है कोए
पीवत ही पीवत लाल तृप्त ना होए
कौन कौन अंग की सौभा बिरचिहै
हरिप्रिया दासी होय सदा संग रहियै"

आज सम्पूर्ण मधुबन के कुंज निकुंज व निभृत निकुंज सुंदर सुकोमल कृष्ण संगिनी प्रेमी सखियों के सुगंधित मेहंदी चंदन कस्तूरी गुलाब चमेली मोगरा अल्ता आदि विभिन्न रंगों व महक से रंगा महका हुआ है जैसे किसी नव दमपति की सेज सजी हो ऐसे सब ओर सुगंध पुष्प व बंदनवार लगे हैं।श्यामा श्यामसुंदर जु के नूपुरों चूड़ियों की खनक भंवरों का अर्धरात्रि गीत मधुगीत गुंजार वन्य जीवों का मंगल गीतगान व पक्षियों का अद्भुत मीठा प्रियाप्रियतम जु के प्रेम भरे रस का मयूर कोकिल गान समस्त प्राकृतिक सौंदर्य स्वाभाविक ही चहुं ओर दसुं दिसि बिखर रहा है।
अनगिनत सखियाँ जिन्हें कभी निकुंज कुंजों में सेवारत रहने के कारण यूँ एक ही प्रांगण में एकत्रित नहीं देखा गया वे सब आज शरद पूर्णिमा की रात्रि में युगल वर के साथ भिन्न भावभंगिमाओं की प्रदाता प्रेम में लिप्त एक हो गईं हैं।एकरूप होकर भी रस रसाल प्रसार करतीं ये हर्षिणी संगिनी प्रीति कोमल सुंदर सलोनी सखियाँ श्यामा श्यामसुंदर जु को सुख प्रदान करने के लिए भिन्न रूप धर आईं हैं।सबके भाव भले ही भिन्न हों पर इनका लक्ष्य एक ही है युगल चरणों में प्रीति अनुराग सहेजना।धन्य सखियों के भाग्य व धन्य इनके अद्भुत समर्पित एकरस भाव।
बड़भागी वे सब आभूषण वस्त्र केशराशि पुष्प श्रृंगार अंगराग मेहंदी अल्ता इत्र जो आज इन सखियों व श्यामा श्यामसुंदर जु के सुकुमार अंग प्रत्यंगों से लिपट कर अपना भाग्य जगा रहे हैं।इनके नयनों का काजल गालों की लाली अधरों पर पीकलाल महकता चहकता रंग सब समर्पित है प्रियालाल जु के रस पिपासा के लिए।
आज की रात्रि पूर्ण चंद्र भी श्याम घण में छिप कर इस महारास का आनंद ले रहा है।आसमान झुक झुक कर अपने प्राणप्यारों का दर्शन कर उनके चरणों की रज को मस्तक पर धराने की चेष्टा कर रहा है और अनेकानेक बार बलिहारी है इस धरा का जिसने अपने अभिमान को त्यागा और जो इन प्रेम देव व देवियों की चरण रज से सदा महकती है।धरा भी बलिहारी है आसमान पर कि आज जो अद्भुत महक उठ रही है इन सबके मधुर मिलन से वह वायुमंडल में भर भर कर आसमान को गहन प्रेम रस से आलिंगन कर रही है।
हाए!और यमुना जु के अद्भुत प्रेम रसातल की उच्छलन का तो क्या कहना!प्रेम लिप्त प्रियाप्रियतम वस्त्र सखियों की भाव लहरियाँ आज तूफान सी उफनती बैठतीं हैं इसमें।आज यमुना जु की लहरों को प्राकृतिक चंद्र की ओर ताकना नहीं पड़ रहा ना।अपने स्वामी व स्वामिनी के ही भाव चंद्र चकोर तृषित उच्छलन से इसमें समय से पूर्व ही सागर सी गहनतम तरंगें उठ रहीं हैं।
श्यामा श्यामसुंदर ही आज दोनों चंचल चंद्र हैं और तमाम सखियों के व उनके स्वयं के नेत्र ही चकोर बने परस्पर निहार कर निहाल हुए जाते हैं।

जय जय श्यामाश्याम
जय जय शरद पूर्णिमा की सुघड़ मिलन रात

मेहंदी भाव-11समाप्त
क्रमशः

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