परस्पर चाव की जय प्रेम के भाव की जय तत्सुखी प्रेम की जय प्रेम के नेमा की जय जय
"प्रेम से नाचूँ गाऊँ मैं बन कर श्याम पपीहा
पीहूपिहू की रट लगाऊँ तुम स्वाति बूँद बन बरसो
मैं पीकर श्याम अघाऊँ
मैं बनकर श्याम चकोरा नैनो में नीर भर लाऊँ
तुम श्याम चन्द्र बन आओ मैं असुवन अर्घ चढ़ाऊँ
मैं बनकर जल की मछली जमुना जल में छिप
जाऊँ
तुम श्याम नहाने आओ मैं तेरे चरण चूम बलि जाऊँ"
श्यामसुंदर जु ने अपने कर पर लगी मेहंदी को छुआ यहां नंदभवन में और उनकी प्रियतमा सिहर उठीं हैं वहाँ कालिंदी के तट पर जहाँ सखियाँ उन्हें स्नान करा रही हैं।
सहसा ऐसा गहन सपंदन कि सखियों के हाथ से एक बार के लिए तैल सामग्री छूट ही जाती है और वे श्यामा जु को देख दंग रह जातीं हैं।
श्यामा जु श्यामसुंदर जु की छुअन को अपने कर पर महसूस करतीं हैं और मुस्करा देतीं हैं।
सब सखियाँ जहाँ दंग रह जाती हैं वहीं श्यामा जु प्रफुल्लित हो उठीं हैं।सखियाँ नि:शब्द सी वहीं बैठ श्यामा जु की भावभंगिमाओं को पढ़ने लगती हैं।आहा!
श्यामसुंदर जु वहाँ अपने पौरों की जावक को छूते हुए अपने कर की हथेली पर लिखे "राधा" नाम को छूते हैं और यहाँ श्यामा जु अपने कर पर लिखे "कृष्ण"नाम को।जय जय!
श्यामसुंदर जु धीरे से "राधा"नाम पढ़ते हुए आँखों को नम कर "राधे" पुकारते हैं और उधर श्यामा जु इस ध्वनि को अपने कानों से सुन बोल उठतीं हैं "कृष्ण"।जय जय!
यूँ आरंभ होती है श्यामा श्यामसुंदर जु की गुप्त हृदय की हृदय से प्रेम रस वार्ता।
कुछ समय तक श्यामा श्यामसुंदर जु यूँ ही दिल की दिल तक प्रेम भरी बातें करते हैं।
"श्यामा जु आप अद्भुत सुंदर हो
उपमा देने लगुं तो सौंदर्य रस अपूर्ण ही रह जाएगा सो आप खुद ही समझ लो।मुझे ऐसी अधूरी उपमा नहीं देनी जिससे आप मान कर बैठो।मेरा और आपका वियोग ना कभी सम्भव है और ना होगा।आपके रोम रोम में समाया हूँ और आपके लिए तैयार स्नान सामग्री में भी भावरूप से मैं ही भरा हूँ।"
ये सुन श्यामा जु लजा जातीं हैं और फिर कहतीं हैं
"अरे तो मेरे स्नानग्रह में भी आप मुझे अपने नेत्र कटाक्षों से छलनी करोगे श्यामसुंदर जु।"
श्यामा जु इतना ही कह पातीं हैं और युगलवर प्रेमरस में डूबने उतरने लगते हैं।
उनको देह की दूरी दूर करती ही नहीं और सेवारत सखियों व सामग्री के रूप में जब श्यामाश्याम जु को परस्पर संग होने का ही एहसास होता है तो वियोग कैसा और विरह किसे!
जय जय श्यामाश्याम।।
मेहंदी भाव-19 समाप्त
क्रमशः
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