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सखी कौ सेबा । सखी भाव पद most

बरनी ना जाय सखी कौ सेबा।
ज्यौ तन युगल प्राण सखी होई,रचे पचे एक दूजै मे जानौ।
होई युगल छबि नैन सखी जानिहै,ज्योति नैनन इन्ही को मानौ।
जीवन युगल ज्यौ जीवनी सखी हौ,बुनिहै दुई एक तानौ बानौ।
प्रेम विकास नीव सखी जानिहै,प्रीत छौर दुई इन बिना नाहि आनौ।
जुगल प्रेम सेवा सखीही होहिहै,मूरत सेबा को सखीही जानौ।
तन मन प्राण जाकै युगल समायै हौ,ऐसैहु सखी जुगल कौ मानौ।
झुकाय शीश प्यारी करै बिनती,कर लेऔ ऐसैहु सखी जु म्हानौ।
सखी युगल प्राणवायु जानिये।
टहल जुगल नित करत घौमती,सेवा सो नेक नाहि नैन अघाइये।
रूचिर हिय जानी सैबा करती,बिनु सखी युगल नाय पग ही उठाइये।
घौमै चकडौर घिरनी सी कुंजन ही,ज्यौ बिनु डोर पतंग ना उडाइये।
भाव तरंग मोद हिय युगल जानती,उठिहै रूचि सौ पहिलै काज कराइये।
संधि सुलह जुगल करावती,कोक कला निपुणा सबै सखी जानिये।
कदसी टेरती प्यारी दिना बित्यै,अजहु प्यारी कौ सखीही बनाइये।

नित्य सत्य रसिक श्यामसुन्दर।
सदा प्रियतमा सुख हेतूू होवै,सदा करत नित नित नव चाव।
देह सो चाव रति न कहावे,कहावे ह्रदय उठत नव भाव।
संग असंग देहि गुण नाय दोषा,जैसी प्रियतमा तैसी प्यारी।
कोटि जतन एको श्याम करिहै,छबि लखन ऐको बारी।
होर लगावत प्रेम देनिहै,तुव देउ सुख जगत को सारौ।
स्व नित ही अवगुण हौ जानिहै,प्रिय जानै गुण खान हो भारौ।
देहि सो देहि प्रेम नाय प्रीती,प्रिती हिय सो हियहि होई।
प्यारी जानिहै कहा बिषय घिरौ मानुष,जानिहै सोई डूब्यौ जौ होई।

जानिहै नाय साधारण नायिका राधा।
सदा स्वयं गुणहीन जानती,सर्व गुणन खान है राधा।
प्रियतम सुखै सुखी रहवती,देती सदा नेह दान है राधा।
स्व कर दूसर सखी सेज सजावती,ऐसो प्रितम सुखै सुखी है राधा।
प्रियतम हितही मान धारती,दुई तन एकहु प्राण है राधा।
सदा पिय हिय बात जानती,सदा रमणी हिय श्याम है राधा।
प्यारी रति सो सुख पिय सदा देती,सदा सर्वदा निष्काम है राधा।

मंज्जरी दासी सखी राधा कौ।
गुण शोभा सम श्री ही,राधिका छाया होय।
प्रियतम प्यारो ऐही जानती,स्वामिनी प्यारो होय।
दुई बिनती करे संग करनौ,नाय संग करनौ चाह कोय।
श्याम नैनन कौर न निहारती,सदा चरणन लगै नैना दोय।
ता पै ह्रदय आह्लाद भाव,राधिका सम सुख होय।
छूवन स्पंदन जडहि सौ भाव,ऐकेहु सम मोद होय।
प्यारी ऐसी दासी मंज्जरी होये,बानक करो ऐसो कोय।

राधिके दासी मंज्जरी प्यारी।
नित नव चाव लाड लाडैती,मानै दासी राधा सुकुमारी।
टहल सबहि संभारती मंज्जरी,नाय कछु आपन चहारी।
पिय स्वामी श्यामा स्वामिनी इनकौ,दोउन ना भेद मनारी।
घौमत घिरनी सी नित कुंजन,करत सिखावत टहल सखीरी।
जानत हिय पल भाव स्वामिनी,आवत ही पूर्ण सबै कारी।
माधव सेवती जान संपत्ति स्वामिनी,नेक निज अधिकार न बिचारी।
हिय प्यारी होये कदै ऐसौ,पल छिन मंज्जरी होन पुकारी।

दुई रस छके पगे आलिंगन।
अभिन्न अंग सुअंग सलोने गात,उलझे परे ढुरे परस्पर अलक सलोने माथ।
जलधर दुई सटै परस्पर हौहि,मिलित होहि रहै चार।
रतनारे चकोर उरझे दुई नैना,जल भरिहै करिहै बरसात।
शीतल चंदन सम ज्वाला अग्नि,उपजै हिय दुई ऐकौ साथ।
त्रुटि ना हटत त्रुटि न छकत,आलिंगन दई त्रुटि नाहि बिसरात।
भुजंग चंदन वृक्ष माहि चढिहै,टटोलतौ सगरौ क्षेत्र रसराज।
कटि कटि कटारी ऐकेहु हौहि,प्यारी ऐकेहु गात सरसात।

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