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मेहँदी भाव , संगिनी 2

प्यारी दुलारी मनमोहिनी मनभाविनो श्यामा जु जय जय"

सखी ध्यान मग्न हुई मेहंदी को पीसती जाती है।पीसते पीसते उसके अश्रु नहीं रूक रहे।बहुत समय बीत गया।अब मेहंदी महीन हो चुकी है तो सखी उसे यमुना जल से चंदनयुक्त मिश्रण तैयार करती है।
मेहंदी फिर निखर उठती है और सखी को धन्यवाद कहने लगती है।

बलिहार सखी।यमुना जल और चंदन की महक ने मुझे और भी शीतलता प्रदान कर मुझे और गहरा दिया है।यह तो ऐसी ही बात हुई जैसे पिसने के बाद तुने मेरा श्रृंगार कर दिया हो।
सखी श्यामा जु के पद कमलों पर लगाने के लिए इस चंदन मिश्रित मेहंदी को एक अनूपम सुंदर मणियों जड़ित पात्र में भर उसको गुलाब मोगरे की पंखड़ियों से सजा देती है।
अहा।।अब तो और भी महक उठी ये मेहंदी।

श्यामा जु एक कुञ्ज में अपनी प्रिय सखियों से घिरी हुई बैठीं हैं और प्रियतम की यादों में खोई अंतरंग सखियों से श्यामसुंदर जु और उनके सखाओं की ही वार्ता सुन विभोर हो रही हैं।श्यामा जु स्नान कर आईं हैं और इस मेहंदी लगाने वाली सखी की ही प्रतीक्षा कर रहीं हैं।

सच एक नवखिली कली सी अनुभूत हो रहीं हैं श्यामा जु।मुखचंद्र ताज़ा खिला सा और देह मधुबन की पवन को महका रही है।श्रृंगार से पहले उनकी रूप माधुरी का क्या उपमा दे वर्णन करूँ।बस उनके सौंदर्य की चमक दमक से ही सगरा जग प्रकाशमय हुआ है और इस वृंदावन नित्य रस केलि की वे रात्रि की चाँदनी हैं तो प्रभात में रश्मि ही वहीं हैं।

सखियाँ इनकी इस निराली रूप छटा का दर्शन कर बलिहार जाती हैं और इनके कर्ण पर काला टिक्का लगाती हैं।श्रृंगार और वस्त्र तो जैसे इनके रूप को छुपाने के लिए ही धराए जाते हों।

मञ्जरी सखी मेहंदी लिए श्यामा जु के चरणों में बैठ जाती है।श्यामा जु से इजाजत लेकर वह उनके दाएँ चरण पर मेहंदी लगाने लगती है।
पहले तो तुलिका को छूते ही मेहंदी में रोमांच हो उठता है और वह तुलिका से एकमेक हो श्यामा जु के चरणस्पर्श के लिए आतुर हो उठती है।

जैसे ही श्यामा जु के चरण छूती है सखी के भाव में उतर जाती है और जैसे जैसे सखी चरण पर इसे लगाती जा रही है इसकी रस गहनता गहराती जाती है और श्यामा जु,तुलिका और सखी के भावों से रंग रंगीली मेहंदी भावभीनी हो जाती है।सखी मेहंदी से श्री जु के चरणों पर अद्भुत सुंदर छवियाँ बनाती जा रही है और मेहंदी ही से पायल जैसे पहनी हो ऐसी सुंदर चरण पर घेरदार आकृति बनाती है जिसे देख सब सखियाँ व श्यामा जु प्रसन्न होतीं हैं।

सखी आज तो बहुत सुंदर मेहंदी रचना कर रही है तू तो सखी कहती है कि आज इस हरी हरी मेहंदी की पत्तियों के भाव संग बहती जा रहीं हूँ।
सखी यूँ ही लगाते हुए श्यामा जु के दाएँ चरण व थोड़ा ऊपर तक सुंदर संरचना बनाती है और मेहंदी सुंदर से सुंदरतम होती जा रही है श्यामा जु के चरणों से लग।

जय जय श्यामाश्याम।
मेहंदी भाव-2 समाप्त
क्रमशः

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