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वृन्दावन सखी , संगिनी जु 3

युगल सखी-3

"राह निहारत थक गई अंखिया बिसर गई सब रैन
कान्हा तुम आये नही नीर बहावे मोरे नैन"

श्यामाश्याम रूपी प्रेम बरसात केवल श्री वृंदावन धाम में ही होती हो ऐसा नहीं है।एकरूप युगल एकरस में डूबे हुए प्रेमरस की बरसात में लीलास्थली श्री वृंदावन की कुंजों को तो डुबाते ही हैं पर यहाँ की मधुर प्रीतिरस की ब्यार उस बरसात के छींटे अपने साथ उड़ा ले आती है जो आसपास के सभी स्थानों में युगल रसास्वादन कराती ही है पर इन छींटों से भी विलक्षण एक और श्यामाश्याम जु की सहचरी सखी जो उनके स्वेद कणों की महक की छुअन से इस ब्यार में घुल जाती है।अब ये महक जिसे सर्वत्र फैल जाना है युगल के प्रेमरस विस्तार हेतू।जो जिस जिस अधिकारी शरणागत सखी तक पहुँचती है युगल कृपा से उसके भीतर श्वास बन विचर जाती है और उसे आकर्षित कर लेती है अपनी ओर।

जिन जिन भक्तजनों को श्री युगल ने चुन रखा हो उन्हें ही ये महक सुहाती है और वे यंत्रवत खिंची चली आतीं हैं जहाँ पहले से श्यामाश्याम जु की कृपा पात्र सखियाँ इन्हीं की तलाश कर रहीं होतीं हैं।

ये प्रेम की अद्भुत अनोखी रस महक ही तो है जो सहचरी रूप से वृंदावन की विथियों से निकल आ समा जाती है इनके हृदयों में और तब आरम्भ होता है युगल प्रेमसखियों का तत्सुख से भरा प्रेम भावराज्य में प्रेमभाव का आदान प्रदान।

कहने को तो प्रियाप्रियतम वृंदावन की सीमाओं से बाहर नहीं आते पर उनकी ये सखियाँ उन हेतू ही रसविस्तार के लिए अपने हृदय में छुपा लातीं हैं इन्हें इनकी व्याकुल विहरित प्रेयसियों से जो श्यामसुंदर जु के इंतजार में जीवनभर बाट जोहती बैठी होतीं हैं कि कोई तार पत्र संदेस संकेत रूप में ही उन तक पहुँचादें कि "धैर्य रख पगली वे आएँगे" और उनकी ये घड़ियाँ उनकी व्याकुलता को इतना बढ़ा दें कि फिर ये हृदय से पुकार उठें
"राह निहारत थक गई अंखिया बिसर गई सब रैन
कान्हा तुम आये नही नीर बहावे मोरे नैन"

तभी आ पातीं हैं ये हतभागिनी सखियाँ इन युगल रस समन्दर में रची पगो सखियों के दिव्य संस्पर्श में।
स्वयं को तृणमात्र बताने वाली सखियों को प्रणाम करतीं चरणों में लगे रज कण को उठा अपने मस्तक पर धर लेतीं हैं।
बस !!
यहीं से आगाज़ हो जाता है एक नवनिर्माण का जो देने चला है जन्म एक नई सखी के हृदयांकित युगल प्रेमरस से सने विरहाग्नि से तपत आकुल व्याकुल मनमंदिर को वृंदावन की रूपरेखा देने केवल एक स्पर्श के माध्यम से।

जय जय युगल रस सहचरीगण
जय जय श्यामाश्याम
जय जय श्री वृंदावन
क्रमशः

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