राधा हुई माधव आलि माधव राधे बने दो समाए एक में ही ज्युं डिबिया इक में दुई होएं जय जय
"राधा मेरी परम आत्मा जीवन प्राण नित्य आधार
राधा से मैं प्रेम प्राप्त कर करता निज जन में विस्तार
राधा मैं हूँ राधा मैं हूँ राधा माधव नित्य अभिन्न
एक सदा ही बने सरस दो करते लीला ललित विभिन्न"
सखियों को आए देख श्यामा श्यामसुंदर जु कुछ सवंरित होने का प्रयास करते हैं।ये चंदा और चंद्र खिलोना इतने कोमल हैं कि इनके श्री अंग ओस बूँदें पड़ी नवखिलित सुंदर कलिकाओं की कोमल पत्तियों जैसे हैं।अर्धनिमिलित नेत्रों से ये सखियों को आया देख लजा जाते हैं।
प्रियाप्रियतम जु की जिस छवि का दर्शन करने के लिए सखियाँ दिन व रात्रि उनकी सेवा व ध्यान में मग्न रहतीं हैं वह मनोरथ अब कुछ इस तरह से पूर्ण होता है।
अनअलंकृत श्यामा श्यामसुंदर जु अद्भुत सौंदर्य की दिव्य प्रतिमाएँ ही लग रहे हैं।अर्धखुले आलस्य भरे नेत्र जिनका काजल बिखर चुका है और गाल और ओष्ठों की लाली गहरा चुकी है।कपोलों की लाली तो लाज के मारे अनकहा सब कह ही रही है और साथ ही श्यामा श्यामसुंदर कभी सखियों को तो कभी एक दूसरे को निहार रहे हैं।
हड़बड़ाहट में श्यामा जु के हाथ का कमल का फूल श्यामसुंदर जु मुख पर लगाए खड़े हैं और श्यामा जु कर श्यामसुंदर जु की वंशी।श्यामा जु की बिखरी हुई केशराशि व श्यामसुंदर जु के उलझे घुंघराले बाल।दोनों के केशों के पुष्प अदला बदली हो चुके हैं।अभी भी युगल कुछ यूँ श्य्या पर बैठे हैं कि उनके केश आपस में उलझे हुए हैं।
प्रिया जु की माँग का सिंदूर श्यामसुंदर जु के मस्तक पर तिलक और काजल अधरों पर लगा है।उनके अधरों की लाली तो काले कान्हा को लालीमा प्रदान कर रही है।श्यामसुंदर जु की मुस्कारहट घबराहट में और श्यामा जु की सकुचाहट शरारत में बदल रही है।
दोनों ने वस्त्र तो ठीक से पहने हैं पर श्यामा जु की चुनरी जो एक छोर से उनकी कमर पर बंधी है और उसका दूसरा छोर श्यामसुंदर जु के कंधे पर है।वहीं श्यामसुंदर जु का पीताम्बर भी एक छोर से उनके हाथ में व दूसरे को श्यामा जु ने जल्दबाजी में अपने वक्ष् पर ले लिया है।वे एक दूसरे को निहारते हैं और जानते भी हैं कि सखियों ने सब देख लिया है पर फिर भी लज्जावश अब चूनरियों को बदल कर ठीक नहीं कर रहे हैं बल्कि चित्रलिखित से कभी खुद को तो कभी सखियों के तीक्ष्ण प्रेम प्रहारों को देख रहे हैं।
श्य्या पर बिखरे मसले पुष्प और सल्वटों से कुछ ऊपर व कुछ नीचे लटका हुआ रेशमी बिछौना।हाए सब अनकहा सा है।
उनके हाथ की मेहंदी व चरणों के अल्ता का रंग रात्रि से भी अधिक गहरा हो चुका है।रात्रि में सब अंतरंग सखियाँ कुछ आभूषण तो उनके भावों से श्यामाश्याम जु में ही एकरूप होकर सम्माहित हुए अभी भी शांत ही हैं।
पर अभी भी श्यामा श्यामसुंदर जु में कुछ है जिसे वो छिपा रहे हैं।उनके कर!श्यामा जु के एक कर में वंशी है और श्यामसुंदर जु के एक कर में कमल का फूल है तो उनके दूसरे हाथ।हाए बलिहारी
उन्होंने अभी भी अपने हाथ पीछे कर रखे हैं जैसे कुछ छुपा रहे हों।
आहा एक नटखट सखी उनके सामने से उन्हें ऊपर से नीचे तक देखती हुई उनके पीछे आती है और देखती है कि श्यामा श्यामसुंदर जु ने अभी भी अपनी तर्जनी अंगुलियों को उलझा रखा है।अभी भी यहाँ इन रस पिपासुओं में रस संचार चल ही रहा है।पूर्ण दिवस व रात्रि संग रहने के बावजूद भी युगल प्यासे ही हैं।हर पल मिलनातुर।अद्भुत प्रेम।
जय जय श्यामाश्याम।
मेहंदी भाव-15 समाप्त
क्रमशः
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