कुंज निकुंज विहारनि श्यामा श्याम निहालनि अंग अंग लपटाविनि प्यारी मन लुभाविनि जय जय
पद कमल पर चढ़ि श्याम मन लुभाविनि
मेहंदी बड़भागिनि श्यामा रस रसायिनी
चापत श्याम पलोटत राधिका चरण
सेवा कुंज बैठि आजिहि चित्त लुटाविनि
श्यामा जु श्यामसुंदर के अंक लगीं अपना स्नेह श्याम जु पर लुटा रहीं हैं और श्यामसुंदर जु भी रससार हुए श्यामा जु को गहन आलिंगन में लिए हुए हैं।दोनों यूँ मिले हैं एक दूसरे से ज्यों कोई स्वप्न देख रहे हों और एक दूसरे के भाव पढ़ कर परस्पर सुख प्रदान करना चाह रहे हों।
गहन आलिंगन की मुद्रा में श्यामसुंदर श्यामा जु का मुख नहीं देख पा रहे पर ना जाने कैसे श्यामा जु श्यामसुंदर के नेत्रों में देख लेतीं हैं और सम्मिलन की घड़ी में भी श्याम जु से भिन्न होने का एहसास उन्हें विचलित कर जाता है।
सहसा वे करूण भाव से क्रंदन्न कर उठतीं हैं।
हा श्याम हा श्याम पुकारती वे स्वयं श्याम जु को बिसरा उन्हें सखी समझ सवाल करने लगतीं हैं।
अरी श्यामल सखी क्या तूने अभी किसी को यहाँ देखा।ना जाने किसके तीखे कटार से नयन सखी मेरे हृदय में उतर गए।ना जाने कौन सखी मेरे अंतर्मन में झाँक मुझे विचलित कर गया है सखी।जैसे मैं कोई स्वप्न ही देख रही थी कि मेरे प्राणप्रियतम मुझे खुद से लिपटाए खड़े मुझ अकिंचन को प्रेम दान दे रहे हैं सखी।
इधर श्यामसुंदर जु कब श्यामसुंदर से सखी हो गए इसी सोच में हैं कि श्यामा जु में तीव्र भाव उच्छल्लन होने लगता है।
पहले तो वे खुद को अकिंचन जान कोस रही हैं अपनी नाकाबलियत को फिर कुछ ही पल में कहने लगतीं हैं कि प्रेम तो करना ही नहीं चाहिए।प्रेम तो सताता ही है।यहाँ मैं प्रियतम बिन बेचैन हूँ तो वहाँ प्रियतम भी कहाँ मुझ बिन व्याकुल ना होंगे सखी।प्रेम में रोग और दवा दोनों प्रेमास्पद ही तो हैं।अरी श्यामवर्णा सखी सच जानो तुम कभी किसी से प्रेम ना कर बैठना।
श्यामसुंदर श्यामा जु की ये विदशा देख चकित हैं।वे एक एक कर सखियों को नृत्य गान करने से रोक कर श्यामा जु को संतुलित करने के लिए आग्रह कर रहे हैं और स्वयं भी श्यामा जु से कह रहे हैं प्यारी जु मैं तो यहीं हूँ ना आपके सम्मुख।पर श्यामा जु तो महाभाव में गहराती जा रहीं हैं।
एक बार फिर से उनके भाव परिवर्तित होते हैं और इस बार तो वो श्यामसुंदर जु को पकड़ कर अपने समक्ष बैठा लेतीं हैं और कहने लगतीं हैं
आज आने दो मोहन को!कभी माफ ना करूँगी!
ऐसा भी कोई नेह लगाता है क्या किसी से कि फिर बिछड़े तो तन से प्राण निकलने जैसे हो जाएँ।अरी सखी अगर प्रेम कर चले ही जाना है तो आना ही क्यों?आज प्रियतम आएँगे तो जाने ना दूँगी।कहूँगी ऐसे आएं कि कभी जाएँ ना या फिर ऐसे जाएँ कि कभी आएं ना।हाए सखी आज तो आने पर भी मान कर बैठूंगी और अगर जाने की कही तब भी मान ही करूँगी।श्यामा जु यूँ रोष करतीं करतीं फिर से शांतचित्त होकर पूछतीं हैं
बोल ना सखी प्यारी सखी मेरे प्रियतम कब आएँगे।देख उन बिन पल भर जीना मुझे गंवारा नहीं।और ये प्राण उनके मिलन की आस में छूटते भी नहीं हैं।बता ना सखी कहाँ हैं मेरे प्राणप्रियतम।चल हम उन्हें ढूँढ लाती हैं।
श्यामसुंदर जु के नेत्रों से अनवरत अश्रुप्रवाह हो रहा है और सखियाँ भी सोच रही हैं कि आज श्यामा जु को क्या हो गया है और अब श्यामसुंदर जु क्या करेंगे श्यामा जु को होश दिलाने के लिए।
अभी सहचरियाँ सोच ही रही होती हैं कि श्यामसुंदर जु बोल उठते हैं
श्यामा जु इतना प्रेम तो मुझे नहीं आपसे।आपके भाव को ही समझ नहीं पा रहा हूँ।मेरे समक्ष होते हुए भी आप मुझसे बिलग होने का भय भीतर समाए बैठीं हैं।
अरे प्यारी जु मैं तो आपके अथाह प्रेम से एक कण मात्र भी प्रेम नहीं करता आपसे।अन्यथा ये अभिन्नता का एहसास क्यों हो आपको।आप तो प्रेम का गहरा समन्दर हैं और मेरा प्रेम तृण मात्र भी नहीं है प्यारी जु।मैं तो आपको देखते ही अपनी तृषा को शांत करने हेतु आपके प्रेम की झलक ही देख संतुष्ट हो जाता हूँ पर आपका ये असीम प्रेम तो अद्भुत है प्रिय।
मैं तो रसतृषित स्वसुखमय प्रेम भी नहीं दे पाता आपको और आप मेरी तृषा बन सर्वसमर्पण कर देती हो।हे प्यारी जु हे प्रेमप्रदायिका मुझ पर कृपा कर अपने प्रेम का एक छींट मात्र ही छिड़क दो ताकि मैं भी आप से प्रेम कर सकूँ।
श्यामसुंदर जु यूँ ही श्यामा जु के चरणों में बैठे अश्रुओं से उनके चरणों का अभिषेक कर रहे हैं कि श्यामा जु सपन्दित हो उठतीं हैं और वहीं दूसरी ओर सखियाँ श्यामसुंदर जु को भी भावदशा में गहराते देख काँप जाती हैं और सोच रहीं हैं कि अगर श्यामसुंदर जु भी श्यामा जु की तरह ही महाभाव में जाने लगे तो युगल को सम्भालना मुश्किल हो जाएगा सो अभी इन्हें होश दिलाना अनिवार्य है।
इतना कहते ही ललिता सखी जु वंशी पर मधुरप्रेम धुन छेड़ देतीं हैं और विशाखा सखी जु वीणा के तार पर प्रेम गीत।कुछ सखियाँ मधुर गीत गातीं हैं और कुछ के पग खुद ब खुद थिरक उठते हैं।
सहचरियाँ श्यामसुंदर जु को उठाकर श्यामा जु संग बिठा देतीं हैं और सपन्दित श्यामा जु का कर श्यामसुंदर जु के हाथ में दे देती हैं।एक सखी ताम्बुल ले आती है और दूसरी उन्हें चंवर डुराने लगती है।
तभी एक प्यारी सखी श्यामा जु को दूसरे कर पर मेहंदी लगवाने के लिए चेताती हैं और जैसे ही सखी मेहंदी का पात्र वहीं तुलिका ले श्यामाजु की ओर बढ़ती है तभी श्यामसुंदर जु झट से पात्र व तुलिका उसके हाथ से ले लेते हैं।
बलिहार!आज तो श्यामसुंदर जु जावक संरचना करेंगे श्यामा जु के सुकोमलतम कर पर।
जैसे ही श्यामसुंदर जु श्यामा जु के कर पर तुलिका छुवाते हैं श्यामा जु धीरे धीरे महाभाव से बाहर आतीं हुईं संवरित होने लगतीं हैं।
जय जय श्यामाश्याम।
मेहंदी भाव-6 समाप्त
क्रमशः
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