*श्यामा जू और बंसी*
श्यामा जू कान्हा का चित्र बनाने लगी हैँ। एक सखी उन्हें चित्रपट ,तूलिका और रंग देकर जाती है। श्यामा जू चित्र बनाना आरम्भ करती हैँ, सर्वप्रथम बंसी का चित्र बनाती हैँ । बनाते बनाते श्यामा जू उस बंसी में ही ऐसी लीन होने लगती हैँ कि अपने हाथ में पकड़ी हुई तूलिका भी अब श्यामसुन्दर की बंसी प्रतीत हो रही है। श्यामा जू उसे बंसी मान उससे बातें करने लगती है।
तुम मेरे प्यारे जू मेरे श्यामसुन्दर की बंसी हो। तुम कितनी भाग्यशाली हो। तुम मेरे प्रियतम की चिरसंगिनी हो। दिन हो या रात उनका एक क्षण भी तुम्हारे बिना नहीं कटता है। तुम भी सदैव उनके मधुर अधरामृत पान को लालायित रहती हो और उसी रस से समस्त चर अचर को अलौकिक रस प्रदान करने वाली हो। प्रिय वंशिके ! तुम यहां क्यों हो। क्या श्यामसुन्दर तुम्हें मेरे पास छोड़ गए है। तुम उनकी आज्ञा से मेरे पास हो। मेरे प्रियतम तुमसे एक क्षण को भी पृथक नहीं रह पाते। तुम मुझे बताओ वंशिके तुम यहां क्यों हो। मेरे प्रियतमतम तुम बिन व्याकुल तो नहीं हो रहे होंगें। इस प्रकार बंसी से बात करते हुए श्यामा जू में विरह भाव उदीप्त होने लगता है।
वंशिके ! क्या तुम भी मेरे समान विरहणी हो। प्रियतम ने तुमहारा त्याग कर दिया है। हाय ! मैं कितनी अभाग्यशाली हूँ जो उन्हें प्रेम नहीं दे पाई। प्रियतम मुझे छोड़ कर चले गए हैँ। क्या उन्होंने तुम्हारा भी त्याग कर दिया है। हाय हम दोनों कितनी अभाग्यशाली हैँ। हमारी देह प्राणों को क्यों धारण कर रही हैँ। बिना प्रियतम क्या हमारे जीवन की कोई सार्थकता है। बोलो वंशी तुम मौन क्यों हो। तुम्हारा नाद तो समस्त ब्रजमण्डल को दिव्य रस प्रदान करता है। तुम तो मृत जीवन में भी प्राणों का संचार करने वाली हो। तुम मुझे उत्तर क्यों नहीं दे रही हो। हाय ! मेरे प्राणवल्लभ की वंशी मृत हो गयी है। प्रियतम ने इसका त्याग कर दिया है ये इस पीड़ा को सहन नहीं कर पाई। इसका प्रियतम से कितना लगाव है।
मुझे तो उनसे प्रेम ही नहीं हुआ। होता तो मेरी देह में भी प्राण नहीं होते। हाय वंशिके तू मृत होकर भी सौभाग्यशाली है। तूने प्रियतम के वियोग में अपने प्राण ही तज दिए। पर श्यामसुंदर तुमसे पृथक नहीं हो पायेंगें। हाय ! मेरे कान्हा को यदि ज्ञात हुआ उनकी वंशी प्राणहीन हो गयी है। प्रियतम को कितनी पीड़ा होगी। हाय ! मेरे मोहन कितने अधीर हो जायेंगें । प्यारे जू की पीड़ा अनुभूत करते हुए प्यारी जू बहुत व्यथित हो जाती हैँ और जोर से चीखती हैँ। उनकी वेदना देख सखी उनके पास दौड़ी आती है। क्या हुआ प्यारी जू आपने अभी तक चित्र नहीं बनाया । सखी ! सखी ! मैं चित्र कैसे बनाऊँ । देखो मेरे प्राणधन ने इस बंसी का त्याग कर दिया और ये विरह पीड़ा में प्राणहीन हो गयी है। मेरे प्यारे अब इसके वियोग में अधीर हो जायेंगें । हाय ! मेरे श्यामसुन्दर को कितनी पीड़ा होगी सखी। सखी कहती है प्यारी जू ये तो बंसी न है। क्या बंसी न है सखी |तुम क्या कह रही हो। इस पीड़ा के समय भी तुम्हें विनोद सूझ रहा है। न न प्यारी जू मैं सच कह रही हूँ देखो आपके करों में तो तूलिका है प्यारी जू आप तो चित्र बना रही थी।
श्यामा कभी चित्रपट तो कभी तूलिका को देखने लगती है। तभी सखी कहती है प्यारी जू सुनो आपके प्राणधन कितनी मधुर बंसी बजाते हुए इधर ही आ रहे हैँ। आप अधीर मत होना। तभी सखी श्यामसुन्दर को प्यारी जू की भाव अवस्था से अवगत करवाती हैँ। श्याम सुंदर उनका आलिंगन करते हैँ और उन्हें अपनी प्रिय बंसी दिखाते हैं। प्यारे जू आपकी बंसी प्राणहीन न है। आप अधीर तो न हो। प्यारे जू कभी इस बंसी का त्याग नहीं करना । ये आपके बिना नहीं रह पायेगी। नहीं नहीं प्यारी जू ये बंसी तो मुझे प्राणों से अधिक प्रिय है। ये मुझे हर समय राधा नाम सुनाती है। आपका नाम ही प्यारी जू इस बंसी द्वारा समस्त चर अचर में प्राणों का संचार करता है। सच है प्रियतम प्यारी जू के नाम लेने वाली वस्तु का भी त्याग नहीं कर सकते। इस अद्भुत प्रेम की जय हो।
जय जय श्री राधे
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