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वृन्दावन सखी , संगिनी जु 4

युगल सखी-4

"बहुत पहले से इन क़दमों की आहट जान लेते हैं,
तुझे ऐ जिंदगी, ऐ जिंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं।"

एक विहरित बिछड़ी सखी का मिलन कैसे हो अपने प्राणप्रियतम से !!
वृंदावन वासी कोई सद्गुरू या युगल आश्रित कोई प्यारी सखी युगल प्रेरणा से आ मिले तभी ना !
जी !!चार तरह से गुरूवर रूप श्यामाश्याम जु पधार ही जाते हैं बड़भागिनी के जीवन में।
एक दृष्टि भर कृपाकोर से निहारते ही उतर जाते।दूसरा प्रणामरूपी छुअन के माध्यम से।तीसरा नामदान दीक्षा रूप से और चौथा एक भावपूर्ण स्पर्श से।ये चारों ही असर तभी करेंगे जब सामने वाले की पात्रता होगी कृपासिन्धु में डूब जाने की और इससे भी ऊपर तब जब पात्र या अपात्र का भेद भुला कर स्वयं युगलकृपा हो जाए किसी प्रेमशून्य हृदय पर।
जिन्हें भी श्यामा श्यामसुंदर जु ने चुन लिया हो वृंदावन की धरा पर रजरस पाने हेतू अन्यथा किसी की कहाँ ऐसी सामर्थ्य  !!

प्रेम रोग है।छूने मात्र से फैल जाता है।ऐसी ही छुअन होती है इन सखियों की जो युगल मिलन की घड़ियों को तो सुखद बनाती ही हैं और साथ ही युगल प्रेम रस की महक को ले आ चखाती हैं व्याकुल विहरित अन्यत्र सखियों को।ये सहचरी सखियाँ प्रियाप्रियतम जु के गहनालिंगन की सिहरन सपंदन को संग लातीं हैं और बिखेरने को आतुर।

अब अपने इन वाक्यों का प्रमाण देने लगूं तो मेरे महकहीन पुष्पों के गुलदस्ते में सामर्थ्य ही नहीं कि ऐसी अद्भुत विभूतियों का गुणगान तो दूर उनका नामुच्चारण भी कर सकूँ।ऐसे कई नाम आते हैं ज़हन में जिन्होंने सत्य में एक युगल प्रेम रस मूर्त सखी के वृंदावन रजलिप्त चरणों को छू लिया हो और फिर उनका जीवन सखीभाव में परिवर्तित हो गया।
सेठ जयदयाल गोयंदका जी से भाई जी का आग्रह कि भगवद दर्शन चाहता हूँ तो उनके समक्ष ही उसी क्षण भाई जी युगल साक्षात्कार करते हुए मूर्छित अवस्था में चले गए और जब होश आया तो स्वयं को लीलानिकुंज की लीलाओं में सखी रूप ही पाया।इन्हीं भाई जी के चरण जब राधा बाबा जू ने छुए तो जैसे उनके समक्ष सर्वत्र जगत ही लीला निकुंज हो गया और वे भाई जी को ही श्रीकृष्ण जान सदा उनके साथ रहने के लिए संकल्प कर लिए।
मीरा बाई सा जु के प्रेम भाव राज्य में जिस किसी ने भी सात्विकता से कदम रखा वह उसी भावराज्य में मीरा बाई सा जु के गिरधर गोपाल की टोह लगाता रह गया।
श्रीमन् श्रीगौर हरि चैतन्य महाप्रभु ने विश्व में जिस किसी का भी सस्नेह आलिंगन किया वह हाथ उठा कर विकल हो हरि हरि बोल निताई गौर राधे कृष्ण कर श्यामाश्याम जु को ढूंढने व पुकारने लगा।
स्वयं किशोरी श्यामा जु भी बिन कोई भेदभाव  के अपने भक्त को अपना लेती हैं।

जय जय सखी भाव सखी
जय जय श्यामाश्याम
जय जय श्री वृंदावन धाम
क्रमशः

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