सवाल Jab mujhe krishna ki jyda yaad aati h to kya kru ??
उत्तर --
निर्भर करता है स्थिति क्या है । दृष्टि क्या है । गहराई कितनी उनकी कृपा से है । अनुराग - पिपासा -लालसा कितनी गहरी है ।
गहराई है तो याद न आने पर पीड़ा होगी । यादों में रहना तो वरदान ही है । खोये रहना , उनकी कृपा से उनके रहना ही तो सब साधन -प्रयासो का फल है । स्थितियां ऐसी हो की संसार को निभाने , धर्मो के निर्वह के लिये जब यादों से ऊपरी रूप से भी हटना हो तो भी पीड़ा हो । यादों में रहना , खोये रहना और तब कुछ भी प्रियतम के लिए हो वहीँ उनके हेतु ।
उनका होकर तो युद्ध भी , (अर्जुन) संग्राम भी करना उनकी पूजा हो जाता है । गोपियाँ लठ मारती है और भी कुछ भी कर देती है वहीँ प्रभु को स्वीकार होता है ।
याद आने पर जो भी हो स्वभाविक हो । याद आना स्वभाविक वृति है । याद आई .... क्योंकि प्रेम - राग - अनुराग -रति है । अब कुछ यहाँ स्वभाविक न हो किसी के कथन अनुरूप हो तो स्वभाविक्ता छुट जायेगी । मान लीजिए तीव्र याद उठी । आंसू - कम्पन - सिसकियां । अब क्या किया जाए .... अब पहलेही स्थिति सुंदर है कुछ भी करना केवल अभिनय बन जाएगा । और जो भी कर्म भीतर से न हुआ वहां फिर ईश्वर का सम्बन्ध नहीँ ।
अस्वभाविकता से स्वभाविक भजन अनुराग की और जाया जाता है । यानी साधन से प्रेम की ओर ।
प्रेम में तो जो भी हुआ वहीँ सटीक साधन होगा । भले उसका भजन साधना से सम्बन्ध भी ना हो ।
याद आने पर परम् रसिकाचार्य नाच उठते थे । बहुत से लोटने पोटने भी लगते । बहुत से प्रेमी रुदन कर पिघलने से ही लगते । परन्तु यहाँ जो भी हुआ सहज हुआ । कोई रटा हुआ अभ्यास नही । तीव्र वेदना में तो नाम तक अटक सा जाता है । और कम्पन रुदन से रोम रोम पुलकित रहता है । प्रयास से भी नाम लिया नही जा पाता । तब भी कोई इस परम् स्वभाविक स्थिति को तोड़ कोई कही हुई बात ही करने लगे तो रस से नीरसता होगी ।
किसी किसी प्रेमी ने याद न आने पर स्वयं को शारीरिक यातना भी दी । रोना ना आने पर अपनी आँखों में पिसी लाल मिर्च भी डाली ।
जैसी स्थिति वैसी क्रिया । कोई रटन्त तरीका न कर वही हो जो होना चाहिए । और सब याद आने पर एक ही तरीके को माने तो प्रभु जी को मिलने वाले रस में विभिन्नता कैसे होगी । अतः उस स्थिति में क्या करना छोड़ .... जो होने लगे उसी रस से प्रभु को भाव रस समर्पण करना मुझे उचित लगता है "तृषित"।
Comments
Post a Comment