गोपी
गोपियों के दो भेद है - नित्यसिद्धा और साधनसिद्धा ।
गोपी के अन्य भेद है - श्रुतिरूपा , ऋषिरूपा , सनकीर्णरूपा , अन्यपूर्वा , अनन्यपूर्वा आदि ।
श्रुतियाँ ईश्वर का वर्णन करते थक गई पर उन्हें अनुभव नही हो पाया । ईश्वर केवल वाणी का विषय नहीं है । जो वेदाभिमानी देव ब्रह्मसम्बन्ध सिद्ध करके , ब्रह्म-साक्षात्कार के हेतु गोकुल में प्रकट हुए , वहीँ है श्रुतिरूपा गोपियाँ । तपस्वी होने पर ऋषियों का काम बना रहा और ईश्वर का अनुभव न हो पाया ।
दर्शन और अनुभव में अंतर है । दर्शन में दृश्य और दृष्टा का भेद है । अनुभव में वे दोनों एक ही हो जाते है । उसमें पूर्णतः अद्वैत है । सो बुद्धिगत काम का नाश करके ब्रह्मसम्बन्ध सिद्ध करके , ब्रह्मात्मक रूप मुक्ति का अनुभव करने के लिए जो ऋषि गोपी बनकर आये थे , उन्हें ऋषिरुपा कहते हैँ ।
सकीर्ण मण्डल में प्रभु के मनोहर रूप को देखकर , मन में कामभाव। जागृत होने से जिन स्त्रियों ने गोपी का रूप लिया , वें कामरूपा है । उदाहरण - सुर्पणखा ।
विवाह के बाद संसार सुखों का उपभोग करते हुए अरुचि होने और प्रभु के प्रति प्रेमभाव हो जाने पर जिन पुरुषों या स्त्रियों ने गोपी का रूप लिया उन्हें अन्यपूर्वा कहा जाता है । जैसे - तुलसीदास जी ।
अनन्यपूर्वा - जन्मसिद्ध पूर्ण वैरागी । शुकदेव , मीरा आदि । अतः इन्हें साधक नहीँ सिद्ध ही माना जाये । परम् साधको को होने वाली अनुभूतियाँ मीरा बाई साँ को बचपन से सदा रही ।
कामवासना भीतर हो तो कृष्ण मिलन न होगा । अतः चीरहरण लीला यहाँ हुई । जिसका विस्तार हम बाद में करेंगे । सभी तरह के द्वैत रूपी पर्दे यहाँ हटते है । विशेष यहाँ शरीर रूपी मैं को आत्मारूपीN मैं में सहज रूपांतरण दिखाया है । देह की आसक्ति जिसे तदात्म्यध्यास कहते है अन्य आसक्ति से निवृत होने पर भी यें रह जाता है । अज्ञान -वासना- वृत्तियों के आवरण का नष्ट होना ही चीरहरण लीला है ।
कुछ गोपियाँ कृष्ण के साथ एक होना नहीँ चाहती । जीव ईश्वर के साथ एक हो जाये तो उनके रसात्मक स्वरूप का अनुभव नही किया जा सकेगा । पृथक् रहने पर ही रस का अनुभव किया जा सकता है ।
नित्यसिद्धा गोपियाँ कृष्ण संग गोलोक से ही आई है । वें नित्य लीला रस की गोपियाँ है । वेणु गीत नाद ब्रह्म की उपासना है , नाद ब्रह्म और नाम ब्रह्म का ऐक्य होने पर रासलीला होती है । वेणु गीत में ब्रह्मचारिणी गोपियों का रास है ।
सभी इंद्रियों से भक्तिरस का पान करता हुआ जीव अपना स्त्रीत्व , या पुरुष्टव भुला दें वहीँ गोपी है । अपना पुरुषत्व या नारीत्व याद रहा तो गोपिभाव नहीँ जागेगा । रासलीला काम लीला नही , कामविजय लीला है । रासलीला के तीन सिद्धांत है । 1. इसमे गोपी के शरीर के साथ कुछ लेना-देना नहीं है । 2. इसमे लौकिक काम नहीं है । 3. यह साधारण स्त्री-पुरुष का नहीं , जीव और ईश्वर का मिलन है ।
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...
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