श्री राधा सर्वेश्वरी,
राधा सरबस ग्यान।
रसिकन निधि राधा हिये,
राधा रसिकन प्रान।
राधा रसिकन प्रान,
नित्य गति आराधन की।
हरन सदा त्रय ताप,
सकल रूजि भव बाधन की।
साधन सुलभ सुगम्य
रम्य रस रूप अगाधा।
भक्त जन पीवत रहत सतत
भज जै श्री राधा राधा।
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पूर्ण स्वरूप श्याम देखन हेत
श्यामा नयन तनिक निरखीये
यां नैनन में श्याम ऐसे बसे
स्याम में न स्याम ऐसे बसे
- तृषित ।
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बाजत पात पात हिलत सुनी आवें पिय निकुँज ।
शीतल समीर संग उड़त मधुप वृंद हरष अति गूँज ।
मधुकर श्याम नीरद श्याम संग सखी वृंद भागत अविराम ।
विचलावे पुकारे श्यामा आवत आवत प्राणेश श्याम ।
पद पद रसिलो तृषित लहराय धरत ताल सम धरा हिय कम्प-कम्प उठत गिरत भूचाल ।
नैनन गन्ध सायक खोजत स्वामिनी हिय - अधर-सुधा-सुरभ-सौरभ मार्ग देवे विपिन तमाल ।
- सत्यजीत तृषित
सायक - बाण
जिस तरह शब्दभेदी बाण शब्द सुन साधे जाते हो । वैसे श्यामसुन्दर के व्याकुल नैन गन्ध सायक स्वामिनी की अधर सुधा अनुकूल वहीँ निशाना साध चल पड़े हो ।
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कहाँ पुकारूँ स्वामिनी
ऐसी सुकोमल ठौर कहाँ निरखुँ
तव सुकोमल नाम धरूँ ऐसो भाव राग को तरसुं
कहत पिय तव उर बसत राधिका मोरी
पिय सुनी अब हिय किवड़ियाँ ते चौकस करती कछु प्रवेश को रोकूँ
वृंद कुँजन बसत लाडिली तृषित कुँज निकुँज कबहू संग संग हेरूँ ।।
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