🌿🌻~प्रेमावली लीला~🌻🌿
(श्री हित ध्रुवदास जी कृत प्रेमावली लीला - कुल 130 दोहे)
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आवत उपमा और उर, अद्भुत परम रसाल।
वृन्दावन पहिरी मनो, नील मनिन की माल ||56||
श्री यमुना जी को देखकर मेरे मन में एक परम सरस एवं अद्भुत उपमा और आ रही है। श्री यमुना जी ऐसी लग रही हैं मानो श्री वृन्दावन ने नील मणियों की माला धारण की है ||56||
हेम बरन अद्भुत धरनि, मनिनु खचित बहु रंग।
बिच-बिच हीरन की झलक, मानो उठत तरंग ||57||
श्री वृन्दावन की भूमि अद्भुत हेम वर्ण की है जिसमें अनेक रंग की मणियाँ खचित हो रही हैँ।उनके बीच में जड़े हुए हीरों की झलक को देखकर ऐसा लगता है मानों तरंगे उठ रही हों ||57||
मृगी-मयूरी-हंसिनी, भरी प्रेम आनन्द।
मत्त मुदित पीवत रहैं, जुगल कमल मकरन्द ||58||
श्री वृन्दावन की मृगी, मयूरी और हंसिनी प्रेमानन्द से भरी हुई मोद मत्त होकर श्री श्यामाश्याम रूपी युगल कमलों के रूप-मकरन्द का पान करती रहती हैं ||58||
कुञ्ज-कुञ्ज अति झलमलै, आसन सेज सुदेश।
सहज सौंज छिन छिन नई, कहि न सकत छवि लेश ||59||
श्री वृन्दावन की प्रत्येक कुञ्ज में सुन्दर शैया रूपी आसन झलमलाते रहते हैं। वहाँ की सम्पूर्ण सामग्री सहज होने के कारण क्षण-क्षण में नवीन बनती रहती है। उनकी छवि के लेश मात्र का वर्णन मुझसे नहीं बन रहा है ||59||
आनन्द बन बरसत कुँवरि, कुञ्जन में जहाँ नित्त।
सुरँग लता द्रुम-फूल-फल, झूम रहे जित-कित्त ||60||
श्री वृन्दावन की कुञ्जों में कुँवरि श्री राधा नित्य आनंद जल का वर्षण करती रहती हैं, जिससे सुन्दर रंग पूर्ण लता-द्रुम एवं फूल फल जहाँ-तहाँ झूमते रहते हैं ||60||
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